रानियों के लिए ही बनती थी ये साड़ी, सोने का होता था बॉर्डर

Saree rajputi style: साड़ी, भारतीय शाही परंपरा का अहम हिस्सा, जो राजा-महाराजा और मुगलों से जुड़ा हुआ है। इन साड़ियों का प्रचलन शाही परिवारों में विशेष रूप से देखा जाता था, जहां उनका पहनावा सिर्फ फैशन का प्रतीक नहीं था, बल्कि इसका इतिहास से जुड़ी कहानी भी बताता था। राजपूती साड़ी में रिच फैब्रिक, जटिल कढ़ाई और अद्वितीय डिजाइनों का समावेश होता है, जो इसे एक खास शाही लुक प्रदान करता है। समय के साथ यह साड़ी भारतीय फैशन का अभिन्न हिस्सा बन गई है, जो आज भी खास अवसरों पर पहनी जाती है।
कांचीवरम साड़ी
इस साड़ी का अपना एक अनोखा इतिहास है। कांचीवरम साड़ी का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। यह साड़ी की उत्पत्ति तमिलनाडु के कांचीपुरम में हुई, जिसे स्वर्ण साड़ी भी कहा जाता है। इसे पहले राजमहलों (Saree rajputi style) की रानियां बड़े शोख से पहनती थीं। इस साड़ी की पहचान है इसकी भरी झाड़ी का काम और सोने-चांदी की धागों का सुंदर डिजाइन। इस साड़ी को पहनने से एक भव्य और शाही लुक मिलता है। यह आज के समय में भी बेहद लोकप्रिय है।
बनारसी साड़ी
बनारसी साड़ी की लोकप्रियता महिलाओं के बीच बेहद है। और हो भी क्यों न, यह पारंपरिक रानियों वाला लुक देती है। बनारसी साड़ी का इतिहास 16वीं शताबदी से जुड़ा है। यह साड़ी वाराणसी में बनती है और मुग़ल काल से यह साड़ी प्रभावित है। इसे पहले केवल शाही परिवार द्वारा पहना जाता था। इस साड़ी की सुंदरता इसकी देंगी फूलों-पत्तियों के डिजाइन में होती है और इसमें जड़ी सोने-चांदी के धागे होते हैं।
चंदेरी साड़ी
चंदेरी साड़ी का इतिहास करीब 2000 साल पुराना है और यह चंदेरी नामक गांव से उत्पन्न हुई है। यह साड़ी हल्की और पारदर्शी होती है, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा गर्मियों में पहनी जाती है। इसकी सुंदर बनावट इसे और भी आकर्षक बनाती है।
महेश्वरी साड़ी
महेश्वरी साड़ी की उत्पत्ति मध्य प्रदेश में हुई है और यह 19वीं सदी में होलकर परिवारों के लिए बनाई जाती थी। यह साड़ी खासतौर पर विवाहों और त्योहारों में पहनी जाती है। इस साड़ी की विशेषता इसमें रंगीन डिजाइन, पारंपरिक बॉर्डर और जटिल रूपांकन होते हैं।
पठानी साड़ी
पठानी साड़ी का इतिहास काफी पुराना है और यह महाराष्ट्र के पठान शहर से उत्पन्न हुई है। यह साड़ी खासतौर पर शाही परिवारों के लिए बनाई जाती थी।
तांत साड़ी
यह साड़ी का इतिहास पश्चिम बंगाल से जुड़ा है। पश्चिम बंगाल की यह पारंपरिक साड़ी गर्मियों में काफी हल्की और आरामदायक होती है। यह साड़ी आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पहनी जाती है।