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Dara Shikoh: दारा शिकोह की कब्र दो जगहों पर क्यों थी, आरएसएस ने दारा शिकोह की तारीफ क्यों की? पढे़ं कहानी

नई दिल्ली: हंपी के विजयनगर राजाओं के कार्यकाल के दौरान इटली का एक यात्री आया था निकोलो मनूची। मनूची ने मुगल बादशाह शाहजहां के अंतिम दिनों का वर्णन किया है। मनूची ने अपनी किताब ‘स्टोरिया डी मोगोर’ में लिखा है-औरंगजेब आलमगीर ने अपने लिए काम करने वाले एतबार खां को शाहजहां को पत्र भेजने की जिम्मेदारी दी। उस पत्र के लिफाफे पर लिखा हुआ था कि आपका बेटा औरंगजेब आपकी खिदमत में एक तश्तरी भेज रहा है, जिसे देख कर उसे आप कभी नहीं भूल पाएंगे। शाहजहां ने जब तश्तरी का ढक्कन हटाया तो वह सन्न रह गया। तश्तरी में उसके सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह का कटा हुआ सिर रखा था। जानते हैं दाराशिकोह की वो दर्दनाक कहानी, जिसने हिंदुस्तान की किस्मत की दारुण शुरुआत कर दी थी। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने औरंगजेब के बजाय दाराशिकोह की वकालत करते हुए उसकी तारीफ की है।

होसबोले को क्यों भाए दारा शिकोह

दत्तात्रेय होसबोले ने कहा-जो हुआ वह यह है कि दारा शिकोह को कभी आइकॉन नहीं बनाया गया। जो लोग गंगा-जमुना संस्कृति की बात करते हैं, वे कभी दारा शिकोह को बढ़ावा देने की कोशिश नहीं करते हैं। दरअसल, मुगल बादशाह शाहजहां के उत्तराधिकारी दारा शिकोह को उदारवादी माना जाता है, जबकि उनके भाई औरंगजेब को कट्टर और क्रूर माना जाता है।

सिर और धड़ अलग-अलग जगह क्यों

शाहजहांनामा के अनुसार, औरंगजेब से पराजित होने के बाद दारा शिकोह को जंजीरों में बांधकर दिल्ली लाया गया। उसका सिर काट कर आगरा किले में शाहजहां के पास भेज दिया गया, जबकि उसके धड़ को हुमायूं के मकबरे के परिसर में दफनाया गया। मनूची लिखता है कि जब दारा का कत्ल हो रहा था तो ये दृश्य देख कर वहां मौजूद औरतें जोर-जोर से रोने लगीं। उन्होंने अपने सीने पीटने शुरू कर दिए और अपने ज़ेवर उतार कर फेंक दिए। औरंगजेब के हुक्म पर दारा के सिर को ताजमहल के परिसर में दफनाया गया। औरंगजेब का मानना था कि जब भी शाहजहां की नज़र अपनी बेगम के मक़बरे पर जाएंगी, वह यह सोचेगा कि उसके सबसे बड़े बेटे का सिर भी वहां सड़ रहा है। दरअसल, औरंगजेब ने ऐसा इसलिए करवाया क्योंकि दारा शाहजहां का चहेता बेटा था।शाहजहां की ताजपोशी के वक्त दारा 13 साल के

सम्राट जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया

जब शहज़ादा दारा शिकोह सिर्फ सात साल के थे, तब उनके पिता शहजादा खुर्रम यानी शाहजहां ने अपने दो बड़े भाइयों के होते हुए भी साम्राज्य का दावा करने के लिए सम्राट जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विद्रोह के सफल होने के अवसर बहुत कम थे। चार साल बाद उनकी ग़लतियों के लिए उन्हें माफ करते हुए पराजित शहज़ादे का शाही परिवार में वापस स्वागत किया गया। अपने बेटे की महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने के लिए सम्राट जहांगीर अपने पोतों को बंधक के रूप में महल में ले गए और उन्हें उनकी सौतेली दादी नूरजहां की निगरानी में रखा गया। 13 साल की उम्र में दारा अपने पिता से उस समय मिलने वाले थे, जब शहज़ादा खुर्रम को बादशाह शाहजहां का ताज पहनाया गया।

शाहजहां की आंखों की तारे थे दारा शिकोह

दारा शिकोह का जन्म ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की भूमि अजमेर में हुआ था, जिनसे उनके पिता शाहजहां ने एक बेटे के लिए प्रार्थना की थी। छह पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र दारा को मुग़ल साम्राज्य के भावी शासक के रूप में तैयार किया गया और महल ही उनका घर था। हालांकि, उनके भाइयों को प्रशासक के रूप में सुदूर प्रांतों में प्रतिनियुक्त किया गया, मगर अपने पिता की आंखों के तारे दारा को शाही दरबार में ही रखा गया।


जब दारा को चिथड़ों में लाया गया था दिल्ली

दराशिकोह को चिथड़ों में दिल्ली लाया गया। इसके बाद उन्हें ज़ंजीरों से बांध कर और कलंकित करके शाही राजधानी की गलियों में एक मादा हाथी के ऊपर बिठा कर उनका जुलूस निकाला गया। उस वक्त दिल्ली दरबार में आए फ्रांसीसी यात्री फ्रांसुआ बर्नियर ने कहा है कि इस घृणित अवसर पर अपार भीड़ जमा हो गई और हर जगह मैंने देखा कि लोग रो रहे थे और बेहद मार्मिक भाषा में दारा के भाग्य पर अफसोस जत रहे थे। हर तरफ़ से कर्णभेदी और कष्टप्रद चीखखें मुझे सुनाई दे रही थीं, क्योंकि भारतीय लोगों का दिल बहुत कोमल होता है। पुरुष, महिलाएं और बच्चे ऐसे रो रहे थे जैसे खुद उन पर कोई भारी विपत्ति आ गई हो।

क्या आरोप लगाकर दारा का किया गया कत्ल

औरंगजेब के इशारों पर उसके चाटुकार उलेमाओं ने दारा पर इस्लाम विरोधी कृत्य का आरोप लगाया गया। दारा को 9 सितंबर, 1659 को मार दिया गया और उसके शव को एक हाथी की पीठ पर लाद कर दिल्ली के शहर के हर बाजार और गली में प्रदर्शित किया गया था। इतिहासकारों ने उस वक्त दारा शिकोह के कत्ल को दुखद व्यक्ति के रूप में बताया है। जिससे हिंदुस्तान में एक नई उम्मीद खत्म हो गई।

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