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भारत का वो राजघराना जो तुर्की में करता था शादियां कुछ संपत्तियां भी वहां

भारत में एक बड़ी रियासत ऐसी थी, जिसकी तुर्की के खलीफा और ओटोमन साम्राज्य से बहुत बेहतरीन रिश्ते थे. इस रियासत ने वहां कई शादियां कीं. इसमें कुछ शादियां कामयाब हुईं. कुछ नहीं हुई. ये रियासत हैदराबाद थी. यहां के निजाम शासकों को तुर्की के उस्मानी शाही परिवार से वैवाहित संबंध बनाना बहुत पसंद था. आखिरी निजाम कहे जाने वाले आठवें निजाम ने तो हाल के बरसों तक अपनी पूरी जिंदगी यहीं बिताई. यहीं उनका निधन हुआ.

20वीं सदी के शुरू में जब तुर्की में उस्मानिया सल्तनत का पतन हो गया तो अंतिम खलीफा अब्दुल मजीद द्वितीय अपने परिवार के साथ फ्रांस में निर्वासन में थे. इसी दौरान भारत के सबसे अमीर शासकों में एक हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान अपने बेटों के लिए योग्य व प्रतिष्ठित दुल्हनों की तलाश में थे.

बेटियों के लिए अच्छे रिश्ते तुर्की में तलाशे
वैसे सातवें निजाम खुद को उस्मानी खलीफा का आधिकारिक नायब भी मानते थे. निज़ाम का तुर्की और उस्मानी सल्तनत से बहुत गहरा धार्मिक और राजनीतिक रिश्ता था. अपने दोनों बेटों का रिश्ता तो उन्होंने ओटोमन साम्राज्य के आखिरी खलीफा से कर दिया लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों के लिए भी तुर्की में अच्छे रिश्ते ढूंढने की कोशिश की. कहा जाता है कि निज़ाम की बेटी दुर्कानारा बेगम का नाम भी एक तुर्की प्रिंस के साथ जोड़ा गया था, मगर वह रिश्ता बाद में टूट गया.

निजाम के बड़े और छोटे बेटे की शादी तुर्की शहजादियों से
12 नवंबर 1931 को फ्रांस के नीस शहर में एक सादे और ऐतिहासिक समारोह में तुर्की के अंतिम खलीफा अब्दुल मजीद द्वितीय की बेटी राजकुमारी दुर्रू शेहवार का विवाह निजाम के बड़े बेटे प्रिंस आजम जाह से हुआ. इसी समारोह में खलीफा के भाई की बेटी राजकुमारी नीलोफ़र का विवाह निजाम के छोटे बेटे प्रिंस मौज़म जाह से हुआ. यानि निजाम ने अपने दोनों बेटों के लिए तुर्की के शाही खानदान की दो शहजादियों का चयन किया.

दोनों शहजादियों को शादी के बाद हैदराबाद में इज्जत मिली
शादी के बाद दोनों राजकुमारियां भारत आईं. हैदराबाद के शाही महलों में बसीं. दुर्रू शेहवार को हैदराबाद की जनता ने बहुत प्यार और सम्मान दिया. वह सामाजिक कार्यों, अस्पतालों की स्थापना, महिला शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आगे रहती थीं. उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि वह हैदराबाद के नवाब परिवार की सबसे चर्चित और प्रिय सदस्य बन गईं.

हालांकि भारत दोनों के लिए मुश्किल था
नीलोफ़र बेगम भी अपनी खूबसूरती और शालीनता के लिए जानी जाती थीं. हालांकि उनका वैवाहिक जीवन उतना सुखद नहीं रहा, लेकिन उन्होंने भी हैदराबाद की संस्कृति में अपनी छाप छोड़ी. हालांकि कहना चाहिए दोनों तुर्की की शहजादियों के लिए ये बहुत मुश्किल था.

जब सातवें निजाम का निधन हुआ तो उन्होंने अपने दोनों बेटों की बजाए अपने पोते मुकर्रम जाह को वारिस बनाया. जिसे आजाद भारत में आठवें निजाम के तौर पर जाना गया.

आठवें निजाम की पहली बीवी तुर्की से थी
हैदराबाद के आठवें निजाम मीर बरकत अली खान मुकर्रम जाह की पहली बीवी भी तुर्की से ही थी. उनकी पहली पत्नी प्रिंसेस एजरा तुर्की के संभ्रांत परिवार से थीं. एजरा से निजाम को एक बेटा और एक बेटी हुए. हालांकि ये रिश्ता 15 साल बाद टूट गया, जब मुकर्रम जाह ने ऑस्ट्रेलिया में बसने का फैसला किया. एजरा ने उनके साथ वहां जाने से इनकार कर दिया. मुकर्रम ने वहां जाकर एक आस्ट्रेलियाई लड़की से शादी की लेकिन ये जल्दी टूट भी गई.

फिर मिस तुर्की से शादी
मुकर्रम जाह की तीसरी शादी तुर्की की मिस तुर्की रह चुकीं मनोलिया ओनूर से 1992 में हुई. मनोलिया ओनूर ओटोमान वंश से थीं. मॉडलिंग की दुनिया में नाम कमा चुकी थीं. इस शादी से एक बेटी नीलोफर हुई. हालांकि ये रिश्ता भी पांच साल बाद टूट गया. मुकर्रम जाह की पांचवीं पत्नी प्रिंसेस आर्चेदी भी तुर्की के बड़े परिवार से थीं. ये रिश्ता भी अधिक समय नहीं चला. आठवें निजाम की शादियों का सिलसिला तुर्की, मोरक्को, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड तक फैला, लेकिन उनका दिल तुर्की में रहा.

आखिरी समय तुर्की में ही गुजरा
इसी वजह से वह तुर्की में ही जाकर रहने लगे. उनके आखिरी साल इसी देश में एक दो कमरे के फ्लैट में गुजरे. मां के पक्ष से यहां उनकी कई रिश्तेदारियां थीं. जिसके कारण उनका मन यहां ज्यादा लगता था.

हैदराबाद से तुर्की के खलीफा को कई बार मोटी रकम
हैदराबाद राज्य ने 1910-1924 के बीच खलीफा को कई बार मोटी रकम और संपत्ति तुर्की भेजी. इसके बदले में तुर्की में कुछ अचल संपत्ति निज़ाम और हैदराबाद स्टेट के नाम पर दर्ज की गई थी. इस्तांबुल और बुरसा में कुछ बंगले और संपत्तियां हैदराबाद स्टेट के रिकॉर्ड में थीं. खलीफा ने निज़ाम को कई बहुमूल्य कलाकृतियां, हथियार और ऐतिहासिक दस्तावेज़ उपहार स्वरूप भेजे. इन उपहारों का एक हिस्सा आज भी सालारजंग म्यूज़ियम, हैदराबाद में संरक्षित है.

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