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बिहार

तेज प्रताप यादव की आरजेडी से विदाई: बिहार की राजनीति में नया मोड़?

पटना: तेज प्रताप यादव की राजद से संभावित विदाई ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है। इस घटनाक्रम से भाजपा को लालू-राबड़ी की छवि के विरोध में एक नया अवसर मिल सकता है।

पटना: बिहार की राजनीति में हलचल मचाते हुए तेज प्रताप यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से छह वर्षों की दूरी तय करने की संभावना ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। राजनीति में सक्रिय रहने के लिए तेज प्रताप के सामने अब अपने ही परिवार के खिलाफ खड़ा होने की मजबूरी आ गई है। केवल पार्टी से नहीं, बल्कि लालू-राबड़ी आवास से भी उनका निष्कासन हो चुका है।

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भाजपा को मिलेगा सियासी फायदा?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि तेज प्रताप की नाराजगी से भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल सकता है। वर्षों से भाजपा की कोशिश रही है कि वह लालू-राबड़ी के राजनीतिक प्रभाव के विरुद्ध मजबूत चेहरा खड़ा करे, और अब तेज प्रताप उसी परिवार से सामने आ सकते हैं। कुछ नेताओं के अनुसार, उन्हें अपने ही परिवार के खिलाफ भड़काया गया है।

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तेज प्रताप लड़ेंगे परिवार और पार्टी के भीतर अपनी लड़ाई

राज्य के नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्रा ने तेज प्रताप को उत्तराधिकारी मानते हुए कहा कि जो व्यक्ति देश की सीमा पर लड़ने की इच्छा रखता है, वह अपने अधिकारों के लिए भी संघर्ष से पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने तेज प्रताप को एक फाइटर बताते हुए कहा कि वह जल्द ही पार्टी के अंदर अपने हक की लड़ाई लड़ेंगे।

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“तेज प्रताप असली उत्तराधिकारी”: जीवेश मिश्रा का बयान

मंत्री मिश्रा ने कहा कि परंपरागत रूप से किसी भी राजघराने में बड़े बेटे को युवराज घोषित किया जाता था, और राजद में यह भूमिका तेज प्रताप की होनी चाहिए थी। लेकिन उन्हें लगातार नजरअंदाज किया गया। मिश्रा के अनुसार, तेज प्रताप में नेतृत्व की पूरी क्षमता है और परिवार ने उनके साथ अन्याय किया है।

तेज प्रताप यादव के सामने संभावित राजनीतिक रास्ते

1. भाजपा में शामिल होना

तेज प्रताप के सामने पहला विकल्प भाजपा हो सकता है। पहले भी जब उन्होंने अलग पार्टी बनाने की कोशिश की थी, तब भाजपा से उनके संपर्क की चर्चा हुई थी। लेकिन तब उनके पारिवारिक संबंध टूटे नहीं थे। अब स्थिति बदली है और भाजपा उन्हें अपने पाले में लाकर राजद के अंदर से विरोध खड़ा कर सकती है। इससे भाजपा को एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को कमजोर करने में भी मदद मिल सकती है।

2. जेडीयू का सहारा

दूसरा विकल्प जेडीयू हो सकता है। चाचा नीतीश कुमार के नेतृत्व में तेज प्रताप को नया मंच मिल सकता है, क्योंकि वह पहले भी उनके मंत्रिमंडल में काम कर चुके हैं। अगर नीतीश कुमार से उन्हें कोई प्रस्ताव मिलता है, तो वह एनडीए की राजनीति में अपनी जगह बना सकते हैं।

3. नई पार्टी का गठन

तेज प्रताप यादव के पास खुद की राजनीतिक पार्टी बनाने का विकल्प भी खुला है। 2021 में उन्होंने छात्र जनशक्ति परिषद नामक संगठन खड़ा किया था। 2019 में भी उन्होंने लालू-राबड़ी मोर्चा के नाम से नई राजनीतिक पहल की थी। वह दो बार इस प्रकार की कोशिश कर चुके हैं, और तीसरी बार इसे पूर्ण राजनैतिक दल का रूप दे सकते हैं।

बिहार चुनाव में एनडीए को होगा फायदा?

तेज प्रताप का निष्कासन बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। वह चाहे नई पार्टी बनाएं या भाजपा-जेडीयू में शामिल हों, सत्ताधारी गठबंधन को राजद के विरोध में एक मुखर चेहरा मिल जाएगा। इससे राजद की राजनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तेज प्रताप अपनी लड़ाई किस मंच से लड़ते हैं—खुद की पार्टी से या सत्ता पक्ष के साथ मिलकर। साथ ही, यह भी अहम रहेगा कि जनता और विशेषकर एम-वाई समीकरण उनके साथ कितना खड़ा होता है।

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