Siwan : वीरेंद्र ठाकुर की सुरक्षा सुनिश्चित हो : हाई कोर्ट

सीवानः पटना हाई कोर्ट ने दारौंदा पिपरा निवासी वीरेंद्र ठाकुर और उनके परिजनों को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया है साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को चार हफ्तों के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने को भी कहा है। इस मामले में एसपी सीवान सुरक्षा के लिए एडीजी (सुरक्षा), को सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए अनुशंसा करेंगे साथ ही हाई कोर्ट में एसपी सीवान व्यक्तिगत रूप से शपथ पत्र देगें। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता और उसके परिवार को खतरा है तो पुलिस अधीक्षक सुरक्षा प्रदान करेंगे।
जिले के डीएम एसपी से गुहार लगाई थी
यह आदेश माननीय न्यायमूर्ति संदीप कुमार ने सीआर.एब्लूजेसी 1427/2023 के अपने मौखिक आदेश में दिया है। वीरेंद्र ठाकुर के चर्चित अतिक्रमण अवमाननावाद एमजेसी 3097/2019 जिसमें सीवान जिला पदाधिकारी को 50 हजार का जुर्माना देना पड़ा था। बताते चले कि वीरेंद्र ठाकुर ने भू माफियाओं व अतिक्रमणकारियों से खतरा बताते हुए राज्य के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव से लेकर जिले के डीएम एसपी से गुहार लगाई थी। वीरेंद्र ठाकुर के मुताबिक अतिक्रमणकारी हाई कोर्ट से अवमाननावाद वापस लेने के लिए लगातार धमकी और स्थानीय प्रशासन से मिलीभगत कर दबाव बना रहे थे जिसके बाद पटना हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिट सीआर.डब्लूजेसी 1427/2023 दायर किया था। हालांकि इस बीच वीरेंद्र ठाकुर के बेटे राजकुमार ठाकुर की हत्या साजिशन अतिक्रमणकारियों द्वारा कर दी गई। इस घटना के बाद याचिकाकर्ता ने आरोपी और स्थानीय पुलिस के सांठगांठ को लेकर एसपी सीवान से लेकर डीजीपी बिहार को आवेदन दिया है।
क्या कहते हैं याचिकाकर्ता
मेरे खिलाफ षड्यंत्र चरम पर है। भू माफिया के पास पैसा और पॉवर है। मैं मुकदमा नहीं उठाऊंगा तो अब छोटे बेटे की हत्या तय है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। हाई कोर्ट से पहले ही इस मामले में जिला प्रशासन को संज्ञान ले लेना चाहिए था तो मेरे बेटे की हत्या नहीं होती। अबतक पुलिस के डर से अपराधी छुपते थे मगर मेरे मामले में उल्टा है हम लोग अपराधी के डर से छुप रहे हैं क्योंकि अपराधी को संरक्षण प्राप्त है। केस उठाने लिए लगातार धमकाया जा रहा है। आगे देखिये भू माफिया क्या करते हैं। जिला प्रशासन क्या करता है।
क्या है पूरा मामला
दारौंदा बाजार की सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने और बाजार की भूमि पर सरकारी दुकान बनाने का यह मामला 2009 से चल रहा है। 2017 में पहली बार कोर्ट ने सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था मगर इसके बाद भी अतिक्रमण जारी रहा जिसके बाद हाई कोर्ट में अवमाननावाद वीरेंद्र ठाकुर ने दायर किया। जिसमें जिला प्रशासन को 50 हजार रुपये जुर्माना के तौर पर प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करवाना पड़ा।