Success Story: कॉल सेंटर में काम करने वाले ने कर दिया कमाल, करोड़ों का खड़ा कर दिया साम्राज्य

नई दिल्ली: 12,000 रुपये की नौकरी से शुरुआत कर राघव ने बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के अपने खुद के लेदर डिजाइनर ब्रांड ‘फाइनलाइंस’ को खड़ा किया। इसका टर्नओवर आज करोड़ों में है। आइए, यहां राघव कपूर की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।
12 हजार की नौकरी से शुरू किया करियर
राघव कपूर का जन्म और पालन-पोषण कानपुर में हुआ। जब वह तीसरी क्लास में थे, तब उनके पिता का जूते का व्यवसाय घाटे में चला गया। इससे दुकान बंद करनी पड़ी। परिवार को वित्तीय संकट से उबरने के लिए अपना घर तक बेचना पड़ा। इस मुश्किल दौर में उनकी मां और पिता ने कानपुर के गोमती नगर में 200 वर्ग फीट की दुकान से एक लेडीज फैशन बुटीक ‘हर्स फैशन’ शुरू किया, जो आज भी चल रहा है। पढ़ाई में औसत रहने वाले राघव की दिलचस्पी हमेशा कला और डिजाइनों में रही। 12वीं के बाद उन्होंने महसूस किया कि हायर एजुकेशन में उनका कोई रुझान नहीं है। इसलिए राघव ने कॉल सेंटर में 12,000 रुपये की नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की। यह उस समय उन्हें बहुत बड़ी रकम लगती थी।
ऐसे मिला कारोबार का अनुभव
कॉल सेंटर की नौकरी राघव के लिए आसान नहीं थी। उनकी दुर्दशा को देखकर राघव के बहनोई वरुण जॉली ने उन्हें अपने छोटे से एक्सपोर्ट कारोबार ‘टेक्स्ट हॉर्स’ में काम करने का मौका दिया। यहां, राघव को घोड़ों के लिए लगाम, पट्टे, काठी जैसे चमड़े के उत्पादों को डिजाइन करने का मौका मिला। लगभग आठ साल तक राघव ने 14-16 घंटे काम करते हुए चमड़े को सुंदर डिजाइन और पैटर्न में बदलने की बारीकियां सीखीं। इस अनुभव ने उन्हें चमड़े के डिजाइन की गहरी समझ दी, जो उनके भविष्य के उद्यम की नींव बनी। वह आज भी ‘टेक्स्ट हॉर्स’ से डिजाइनर के तौर पर जुड़े हुए हैं।
10 लाख की पूंजी से शुरू किया बिजेनस
‘टेक्स्ट हॉर्स’ में डिजाइनर के रूप में आठ साल काम करने के बाद 2016 में एक छोटी सी घटना ने राघव को अपने खुद के ब्रांड ‘फाइनलाइंस’ को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। यूरोपीय ग्राहक सेलीन ‘टेक्स्ट हॉर्स’ के लिए भारत आई थीं और चमड़े के बैग बनाने वाली एक फैक्ट्री का दौरा करना चाहती थीं। जब वह फैक्ट्री की अव्यवस्था से निराश हुईं तो उन्होंने राघव से पूछा, ‘तुम बैग क्यों नहीं बनाते?’ इस सीधे से सवाल ने राघव के लिए प्रेरणा का काम किया। उन्होंने तुरंत सेलीन के प्रवास के दौरान हर दिन 50-60 बैग डिजाइन बनाए। सेलीन प्रभावित हुईं और उनके अनुमोदन के बाद राघव ने 10 लाख रुपये के निजी निवेश से अपने बहनोई वरुण जॉली के साथ ‘फाइनलाइंस’ को लॉन्च किया।
आज करोड़ों का टर्नओवर
‘फाइनलाइंस’ ने कानपुर में वरुण की मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट के भीतर 600 वर्ग फीट के छोटे से एरिया से 20 लोगों की टीम के साथ शुरुआत की। इसमें कर्मचारी और पैटर्न मेकर शामिल थे। आज, ‘फाइनलाइंस’ 70 SKUs (स्टॉक कीपिंग यूनिट्स) के साथ हर महीने लगभग 5,000 पीस की मैन्यूफैक्चरिंग करता है। इसका टर्नओवर 7 करोड़ रुपये से ऊपर निकल गया है। यह एक B2C ब्रांड है जो पूरी तरह से अपनी वेबसाइट के माध्यम से संचालित होता है। इसकी 80% बिक्री भारत और 20% यूरोपीय देशों में होती है। राघव अन्य चमड़े के ब्रांडों के उलट 100% फ्रेंच लेदर का इस्तेमाल करते हैं, जो अपनी क्वालिटी और ड्यूरेबिलिटी के लिए जाना जाता है। ‘मिला स्लिंग बैग’ उनका सबसे ज्यादा बिकने वाला प्रोडक्ट है। राघव की कहानी नए उद्यमियों के लिए मिसाल है। यह खुद पर विश्वास रखने और आसानी से हार नहीं मानने की सीख देती है।