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Caste Census: राहुल का जाति वाला लड्डू पचा पाएंगे मोदी?

डॉ संतोष मानव

राहुल गांधी तीन साल से जाति गिनती का लड्डू बना रहे थे, खूब मेवा डाला, कनस्तर भर- भर कर घी डाला पर बीते 30 अप्रैल को नरेंद्र मोदी ने हाथ बढ़ाया और गप से लड्डू निगल गए। अब सवाल है कि मोदी जी यह लड्डू पचा पाएंगे ? इसलिए कि लड्डू भारी है, पचाने में पेट बिगड़ने का डर है। उल्टी होने की भी आशंका है। कैसे? क्या है खेल? आइए, समझते हैं।

तर्क है कि 1931 के बाद जाति आधारित जनगणना नहीं हुई है, या हुई है तो डाटा सार्वजनिक नहीं किया गया, जो डाटा है, 95 साल पुराना है। नए सिरे से जाति गिनेंगे, तो सटीक डाटा होगा। इससे कल्याणकारी योजनाएं बनाने में सहूलियत होगी, तो क्या बात इतनी भर है? नहीं, ऐसा नहीं है। इस योजना और घोषणा से बीजेपी कहिए या नरेंद्र मोदी को भारी फायदे की उम्मीद है।

राहुल को किया पैदल :
पहला फायदा यह है कि राहुल पैदल हो गए। दो साल से एक ही मुद्दा था – जाति गिनो। अब मुद्दा ही छिन गया। अब क्या बोलेंगे? और मोदी के एक हाथ में मंडल, दूसरे हाथ में कमंडल। ऐसे में फायदा किसका, साफ समझ में आता है।

बिहार में चुनाव है:
मोदी बताएंगे हमने यह किया, वह किया। यह भी करेंगे, तो परसेंटेज में कुछ न कुछ वोट तो बढ़ेगा। एक पर्सेंट बढ़े या पांच, बढ़ना तो तय है। बिहार के चुनावी मैदान में अब तक एनडीए बीस था, अब इक्कीस हो गया।

सहयोगी भी बम-बम:
उत्तर प्रदेश में अपना दल, बिहार में जनता दल (यू), चिराग पासवान वाली पार्टी जाति गिनने के पक्ष में थी। उनकी मांग पूरी यानी साफ है कि एनडीए और मजबूत।

सकल हिंदू समाज:
संघ की लाइन पर दौड़ रही बीजेपी माइनस मुस्लिम पालीटिक्स की पिच पर खेल रही है। इस निर्णय से इस पिच पर बालिंग -बैटिंग दोनों मजबूत। अस्सी बनाम बीस की पालीटिक्स और मजबूत होगी।

कैसे हुआ फैसला :
29 अप्रैल को संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत प्रधानमंत्री आवास गए थे और तीस अप्रैल को जाति गिनने की घोषणा हो गई। यानी इसी बैठक में तय हुआ कि इस मुद्दे का माइलेज लिया जाए। बीजेपी को जानने वाले जानते हैं कि बिना
संघ की सहमति के इतना बड़ा निर्णय नहीं हो सकता

लेकिन खतरा भी है :
सबकुछ बहुत आसान भी नहीं है। इस निर्णय से कुछ जातियों के नाराज़ होने का खतरा है। अगर असंतोष भड़का तो नफा-नुकसान बराबर हो जाएगा। यानी मोदी का मास्टरस्ट्रोक गड़बड़ भी हो सकता है। पर मोदी को जानने वाले जानते हैं कि मोदी का गणित गड़बड़ नहीं होता है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। राजनीति और समाज पर लिखते हैं)

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