इस मुगल बादशाह के कारण भारत रहा 200 साल तक गुलाम! जानें वो फैसला जिसने छीनी थी आजादी
Mughal History: मुगलों के करीब 300 साल के शासनकाल में कई बादशाह आए जिन्होंने कई शानदार निर्माण भी किए. लेकिन एक बादशाह के कारण भारत को गुलामी झेलनी पड़ी.

Mughal History: भारत में मुगलों का जितनी तेजी से उत्थान हुआ, उतनी ही तेजी से उनका पतन भी हुआ. बाबर से लेकर औरंगजेब तक मुगल साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ. उन्होंने भारत में कई शानदार निर्माण कार्य कराए, जिससे उन्हें दुनिया भर में पहचान मिली. राजकोष में तेज वृद्धि देखी गई. हालांकि, औरंगजेब के बाद की पीढ़ियां मुगल साम्राज्य का प्रबंधन और विस्तार करने में विफल रहीं, जिससे उसका पतन हुआ. उन्होंने ऐसे निर्णय लिए जो मुगल सल्तनत को बर्बादी की ओर ले गए.
नाम का बादशाह
डीएनएइंडिया डॉटकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार औरंगजेब का पोता फर्रुखसियर भी उन मुगल बादशाहों में से था जिनके गलत फैसलों के कारण न सिर्फ मुगल सल्तनत बर्बाद हुई बल्कि भारत की प्रगति भी बाधित हुई. देश विनाश की ओर अग्रसर हो गया. फर्रुखसियर का भारत को बर्बादी की ओर ले जाने का जो निर्णय महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ. वो था उसका जहांदार शाह की हत्या करके मुगल सल्तनत की गद्दी पर बैठना. 1713 से 1719 तक शासन करने वाले फर्रुखसियर केवल नाम के बादशाह थे. वास्तव में मुगल साम्राज्य की कमान सैयद बंधुओं के हाथ में थी.
ऐसे बढ़ता गया सैयद बंधुओं का रुतबा
सैयद बंधु 1707 में औरंगजेब के प्रशासन का हिस्सा थे. दोनों भाइयों, सैयद हसन अली खान और सैयद हुसैन अली खान ने औरंगजेब के शासनकाल के दौरान अपना प्रभाव बढ़ाया. औरंगजेब की मृत्यु के बाद, दोनों भाइयों ने मुगल दरबार में अपना प्रभाव इस हद तक बढ़ा लिया कि वे निर्णय लेने लगे जैसे कि वे स्वयं सम्राट हों. उन्होंने जिसे चाहा उसे मुगल बादशाह बना दिया. दोनों भाई सैन्य वर्ग से ताल्लुक रखते थे, इसलिए उन्हें यह बेहतर मालूम था कि दुश्मनों से कैसे निपटना है.
औरंगजेब ने हसन अली को बनाया सूबेदार
इन्हीं खूबियों के कारण 1697 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने मराठों का विस्तार रोकने के उद्देश्य से सैयद हसन अली खान को 1698 में खानदेश का सूबेदार नियुक्त किया. हसन अली खान ने मराठाओं के विरुद्ध औरंगजेब के अंतिम अभियान को आगे बढ़ाने काम काम किया. हुसैन अली खान, मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान पहले अजमेर में रणथंभौर, और फिर आगरा में हिंडौन-बयाना के प्रभारी रहा. धीरे-धीरे दूसरे भाई का भी प्रभाव बढ़ने लगा.
ईस्ट इंडिया कंपनी को दी व्यापार की अनुमति
1717 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी. उसने उन्हें बिना किसी कर के व्यापार करने की अनुमति दी. ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, ओडिशा और बिहार में कर-मुक्त अपने परिचालन का विस्तार करने की इजाजत मिल गई. इसके बाद कंपनी ने मुगल बादशाह को सालाना 3,000 रुपये का भुगतान किया.
सैयद बंधुओं ने किया विश्वासघात
एक समय ऐसा भी था जब फर्रुखसियर और सैयद बंधुओं के बीच मतभेद पैदा हो गए थे. दोनों के बीच कलह के बीज बो दिए गए. वे एक-दूसरे को हराने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ साजिश रचने लगे. 1719 में, अजीत सिंह ने सैयद बंधुओं के जरिये लाल किला पर हमला किया. स्थिति ऐसी थी कि सम्राट को अपनी मां, पत्नी और बेटियों के साथ छिपना पड़ा. सैयद बंधुओं के विश्वासघात के कारण फर्रुखसियर को ढूंढ लिया गया और उन्हें अंधा कर दिया गया. दोनों के बीच युद्ध का सीधा फायदा ईस्ट इंडिया कंपनी को मिला. इसने धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया. भारत पर उनका नियंत्रण लगभग 200 वर्षों तक रहा. बाद में ब्रिटेन ने देश पर शासन किया.
मुहम्मद शाह की हुई ताजपोशी
मुगल बादशाह फर्रुखसियर की हत्या के बाद सैयद बंधुओं ने फरवरी 1719 में फर्रुखसियर के चचेरे भाई, रफ़ी उद-दराजत को अगला शासक बनाने की तैयारी की. सितंबर 1719 में रफी उद-दौला की फेफड़े की बीमारी की मौत होने के कारण अंतत: सैयद बंधुओं को 1720 में मुगल शहजादे मुहम्मद शाह की ताजपोशी करनी पड़ी.
कम होने लगा सैयद बंधुओं का रुतबा
सैयद बंधुओं ने मुगल साम्राज्य में अघोषित तौर पर एकाधिकार हासिल करने के बाद दरबार में तुर्क और ईरानी अमीरों के रुतबे को घटा दिया था. धीरे-धीरे सैयद बंधु रईसों के आंखों की किरकिरी बनने लगे. दरबार के लोग इनके खिलाफ एकजुट होने लगे. सैयद बंधुओं के असर को खत्म करने के लिए दोनों भाइयों को दक्कन भेज दिया गया. निजाम-उल-मुल्क ने दोनों भाइयों का प्रभुत्व खत्म करना शुरू किया. पहले असीरगढ़ और बुरहानपुर के किलों पर कब्जा कर लिया. फिर सैयद हुसैन अली खान के दत्तक पुत्र मीर आलम अली खान को भी मार डाला, जो दक्कन का उप सूबेदार था.
सैयद बंधुओं का सूर्य हुआ अस्त
दिल्ली में सैयद बंधुओं के खिलाफ एक साजिश रची गई. निजाम-उल-मुल्क ने 9 अक्टूबर, 1720 को सैयद हुसैन अली खान को मार डाला. सैयद हसन अली खान एक बड़ी सेना के साथ अपने भाई की हत्या का बदला लेने के लिए निकल पड़ा, लेकिन वह पलवल (हरियाणा) के पास हसनपुर में लड़ाई हार गया और कैद कर लिया गया.
औरंगजेब ने हसन अली को बनाया सूबेदार
इन्हीं खूबियों के कारण 1697 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने मराठों का विस्तार रोकने के उद्देश्य से सैयद हसन अली खान को 1698 में खानदेश का सूबेदार नियुक्त किया. हसन अली खान ने मराठाओं के विरुद्ध औरंगजेब के अंतिम अभियान को आगे बढ़ाने काम काम किया. हुसैन अली खान, मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान पहले अजमेर में रणथंभौर, और फिर आगरा में हिंडौन-बयाना के प्रभारी रहा. धीरे-धीरे दूसरे भाई का भी प्रभाव बढ़ने लगा.
ईस्ट इंडिया कंपनी को दी व्यापार की अनुमति
1717 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी. उसने उन्हें बिना किसी कर के व्यापार करने की अनुमति दी. ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, ओडिशा और बिहार में कर-मुक्त अपने परिचालन का विस्तार करने की इजाजत मिल गई. इसके बाद कंपनी ने मुगल बादशाह को सालाना 3,000 रुपये का भुगतान किया.
सैयद बंधुओं ने किया विश्वासघात
एक समय ऐसा भी था जब फर्रुखसियर और सैयद बंधुओं के बीच मतभेद पैदा हो गए थे. दोनों के बीच कलह के बीज बो दिए गए. वे एक-दूसरे को हराने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ साजिश रचने लगे. 1719 में, अजीत सिंह ने सैयद बंधुओं के जरिये लाल किला पर हमला किया. स्थिति ऐसी थी कि सम्राट को अपनी मां, पत्नी और बेटियों के साथ छिपना पड़ा. सैयद बंधुओं के विश्वासघात के कारण फर्रुखसियर को ढूंढ लिया गया और उन्हें अंधा कर दिया गया. दोनों के बीच युद्ध का सीधा फायदा ईस्ट इंडिया कंपनी को मिला. इसने धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया. भारत पर उनका नियंत्रण लगभग 200 वर्षों तक रहा. बाद में ब्रिटेन ने देश पर शासन किया.