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Caste Census: क्या जाति जनगणना से बदल जाएगा बिहार चुनाव का पूरा समीकरण?, समझिए यहां

नई दिल्ली. मोदी सरकार अब देश में जाति जनगणना कराएगी. हाल के वर्षों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी जाति जनगणना कराने की मांग संसद के अंदर और बाहर करते रहे हैं. बिहार चुनाव से पहले मोदी कैबिनेट ने बड़ा फैसला लेकर राहुल गांधी के तरकस से एक और मुद्दा छीन लिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार चुनाव से पहले जाति जनगणना कराने के फैसला मोदी सरकार ने क्यों लिया? इस फैसले का बिहार चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा दांव खेला है. केंद्र सरकार ने देशव्यापी जाति आधारित जनगणना कराने का ऐलान किया है, जिसने बिहार की सियासत में भूचाल ला दिया है. यह फैसला बिहार में जातिगत समीकरणों पर आधारित राजनीति को नया मोड़ दे सकता है, जहां जाति आधारित वोटबैंक हमेशा से निर्णायक रहा है. इस कदम ने विपक्षी नेताओं, खासकर कांग्रेस के राहुल गांधी और राजद के तेजस्वी यादव को रणनीतिक रूप से बैकफुट पर ला दिया है, जो लंबे समय से जाति जनगणना की मांग को अपना प्रमुख मुद्दा बनाए हुए थे.

मोदी का जातिगत जनगणना पर मास्टर स्ट्रोक
बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा 2023 में तब सुर्खियों में आया, जब नीतीश कुमार की सरकार ने राज्य में जातिगत सर्वे कराया. इस सर्वे में पता चला कि बिहार की आबादी में ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) मिलकर 63% हैं, जबकि सवर्ण 15.52% और अनुसूचित जाति-जनजाति 21% से अधिक हैं. तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने इस सर्वे को आधार बनाकर केंद्र पर राष्ट्रीय स्तर की जाति जनगणना के लिए दबाव बनाया था. राहुल ने इसे ‘सामाजिक न्याय का एक्स-रे’ करार दिया, जबकि तेजस्वी ने इसे ‘दशकों के संघर्ष का प्रतिफल’ बताया. लेकिन अब पीएम मोदी के इस ऐलान ने विपक्ष के इस हथियार को कुंद कर दिया है.

बिहार चुनाव पर क्या पड़ेगा असर?
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि यह फैसला बिहार में ओबीसी और ईबीसी वोटरों को साधने की रणनीति का हिस्सा है. पिछले दो दशकों में भाजपा ने सामाजिक इंजीनियरिंग के जरिए यादव-मुस्लिम समीकरण से इतर अति पिछड़ा वर्ग में अपनी पैठ बनाई है. जाति जनगणना का वादा इन वोटरों को यह संदेश देता है कि केंद्र सरकार उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध है. इससे नीतीश कुमार की जेडीयू, जो ईबीसी वोटों की बड़ी साधक रही है, को भी मजबूती मिल सकती है.

अब क्या करेंगे राहुल और तेजस्वी?
विपक्ष के लिए यह उलझन भरा है. राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में ‘जितनी आबादी, उतनी भागेदारी’ का नारा दिया था. अब इस मुद्दे पर भाजपा को श्रेय लेने से रोकने के लिए नई रणनीति तलाश रहे हैं. तेजस्वी यादव, जिन्होंने 2023 के सर्वे का श्रेय लिया था, अब यह दावा नहीं कर पाएंगे कि केवल उनकी पार्टी ही पिछड़ों की हितैषी है. विश्लेषकों का मानना है कि अगर भाजपा इस जनगणना को प्रभावी ढंग से लागू करती है, तो महागठबंधन का ओबीसी-मुस्लिम गठजोड़ कमजोर पड़ सकता है.

हालांकि, कुछ सियासी पंडितों का कहना है कि यह कदम जोखिम भरा भी हो सकता है. जाति जनगणना से अगर कुछ जातियों की संख्या अपेक्षा से कम निकली तो यह असंतोष पैदा कर सकता है. ऐसे में बिहार के कुछ जातियों में जहां खुशी की लहर दौड़ सकती है वहीं कुछ जातियों को संख्या कम होने का डर सता रहा है. कुलमिलाकर बिहार के आगामी चुनाव में जाति जनगणना कराने का फैसला काफी असरदार होने वाला है. यह पीएम मोदी का एक और मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है, जिसने बिहार के चुनावी समीकरण को और जटिल बना दिया है.

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