पत्नी से 20 हजार रुपये का लिया उधार, पहली बार नीतीश कुमार के विधायक बनने की कहानी जानिए

बात 1977 के बिहार विधानसभा चुनाव की है, जब केवल 26 साल की उम्र में नालन्दा की हरनौत सीट से चुनाव लड़ रहे थे। नीतीश कुमार जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनाव में जनता पार्टी ने 214 सीटें जीती और 97 पर उसे हार का सामना करना पड़ा। उन 97 सीटों में नालंदा की हरनौत सीट भी थी, जिसपर नीतीश चुनाव लड़े थे। उन्हें शिकस्त देनेवाला कोई नहीं भोला प्रसाद सिंह थे, जिन्होंने चार साल पहले ही नीतीश और उनकी पत्नी को कार में बैठाकर पटना से बख्तियारपुर तक छोड़ा था। नीतीश पहली हार को भूलकर 1980 में दोबारा इसी सीट से खड़े हुए, लेकिन इस बार जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर। इस चुनाव में भी नीतीश को हार मिली। वो निर्दलीय अरुण कुमार सिंह से हार गए। अरुण कुमार सिंह को भोला प्रसाद सिंह का समर्थन हासिल था।
पति-पत्नी ज्यादातर एक-दूसरे से अलग रहे
इस तरह नीतीश कुमार 1980 तक अपना दूसरा चुनाव भी हार गए थे। उसके कुछ सप्ताह बाद ही उनकी पत्नी मंजू सिन्हा ने 20 जुलाई, 1980 को निशांत को जन्म दिया, जो उन दोनों का इकलौता बच्चा था। अपनी पुस्तक में पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने लिखा की मंजू की गर्भावस्था के दौरान पति-पत्नी ज्यादातर एक-दूसरे से अलग रहे। ऐसी परिस्थितियों में यह संभव नहीं था कि नीतीश अपने बेटे की देखभाल या उसके लालन-पालन की तरफ ज्यादा समय या ध्यान दे पाते। बच्चा अपने नाना-नानी की देख-रेख में पल रहा था और नीतीश यदा-कदा ही वहाँ जाते थे। इसका एक कारण यह भी था कि नीतीश को वहाँ जाने पर ऐसा महसूस होता था जैसे परिस्थिति उनके मुँह पर ताना कस रही हो-आ गया वह इंजीनियर जिसने नौकरी करने से साफ मना कर दिया, एक ऐसा राजनीतिज जिसके पास मेहनत के बदले में मिली असफलता के सिवा कुछ नहीं है दिखाने के लिए।
दाँवपेंच का जवाब दाँवपेंच से
इसके बाद सन् 1985 के विधानसभा चुनाव में कूदना आसान नहीं था, क्योंकि राजीव इंदिरा लहर अभी तक चढ़ाव पर थी। और नीतीश का पुराना विरोधी, कुर्मी अधिकारों का तरफदार, अरुण चौधरी अभी भी मैदान में था। लेकिन इस बार नीतीश और उनको लोक दल टोली-विजय कृष्ण नीतीश का सलाहकार-प्रबंधक बन गया था और उन राजपूत समुदाय का महत्त्वपूर्ण समर्थन नीतीश के पक्ष में कर लिया था-बेहतर तैयारी के साथ मैदान में उतरी, दाँवपेंच का जवाब दाँवपेंच से, धमकी का जवाब धमकी के लिए कमर कसे हुए।
संरक्षकों ने उन्हें धन मुहैया कराया था
इस बार का चुनाव नीतीश के लिए सफल होने या मिट जाने का सवाल बन था। नीतीश ने पत्नी को वचन दिया था कि इस बार यदि वह चुनाव हार गए तो राजनीति हमेशा के लिए त्याग देंगे और कोई परंपरागत काम-धंधा ढूँढ़कर अपने गृहस्थ जीवन में रम जाएँगे। इस वादे पर मंजू ने उदारता के साथ 20,000/- रुपए का इनाम अभियान में खर्च करने के लिए उनकी झोली में डाल दिया- यह राशि लगभग दहेज की रकम के बराबर थी। जिस पर नीतीश ने बवाल खड़ा कर दिया था। नीतीश के पास साधनों का अभाव नहीं था, चंद्रशेखर और देवीलाल जैसे कृपालु संरक्षकों ने उन्हें धन मुहैया कराया था। देवीलाल की सरपरस्ती उन्हें ही में प्राप्त हई थी। नीतीश का प्रचार अभियान इस बार बेहतर ढंग से आयोजित किया गया। उसमें अच्छा तालमेल था- चुनाव संबंधी कामकाज सँभालने में अधिक लोग लगे थे। नीतीश कुमार लोकदल के टिकट पर हरनौत से चुनाव लड़े और पहली बार चुनाव जीत गए।