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विचार

Roopmati history: बाज बहादुर से प्यार, अकबर से इनकार और आत्मसम्मान के लिए बलिदान

Roopmati history: "तवायफ" शब्द सुनते ही अक्सर लोगों के मन में नकारात्मक छवि बन जाती है, उनकी अदाएं, सुर, और संस्कृति में योगदान उन्हें समाज में विशिष्ट स्थान दिलाते थे। इन्हीं में से एक नाम है — रानी रूपमती का, जिनकी सुंदरता और प्रेम कहानी आज भी मालवा की मिट्टी में गूंजती है।

Roopmati history: नई दिल्ली, “तवायफ” शब्द सुनते ही अक्सर लोगों के मन में नकारात्मक छवि बन जाती है, लेकिन सच यह है कि ऐतिहासिक दौर में तवायफें सिर्फ नृत्य और गायन की कला के लिए जानी जाती थीं, न कि जिस्मफरोशी के लिए। उनकी अदाएं, सुर, और संस्कृति में योगदान उन्हें समाज में विशिष्ट स्थान दिलाते थे। इन्हीं में से एक नाम है — रानी रूपमती का, जिनकी सुंदरता और प्रेम कहानी आज भी मालवा की मिट्टी में गूंजती है।

Roopmati history: नृत्य और सौंदर्य से मोहित हुआ मालवा का शासक

रानी रूपमती (Roopmati history) मूलतः एक तवायफ थीं, जिनका सौंदर्य और नृत्य का हुनर पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध था। कहा जाता है कि उनकी सुंदरता वसंत की सुबह जैसी थी और उनका चेहरा चांद को भी मात देता था। एक बार उज्जैन में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में जब मालवा नरेश बाज बहादुर ने उन्हें पहली बार नाचते देखा, तो वे मंत्रमुग्ध हो गए। दोनों के बीच प्रेम हुआ और बाज बहादुर उन्हें अपने महल ले आया, जहां उन्होंने रूपमती को रानी बना दिया।

Roopmati history: अकबर की लालसा और रानी रूपमती का आत्मसम्मान

रानी रूपमती (Roopmati history) की सुंदरता और शोहरत इतनी फैली कि खबर मुगल सम्राट अकबर तक भी पहुंच गई। अकबर ने रूपमती को अपने हरम में शामिल करने की इच्छा जताई और बाज बहादुर को प्रस्ताव भेजा। लेकिन बाज बहादुर ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

इस अपमान से क्रोधित होकर अकबर ने मालवा पर हमला कर दिया। बाज बहादुर की सेना मुगल सेना के सामने टिक नहीं सकी और अंततः उन्हें पराजित होना पड़ा। बाज बहादुर युद्ध के मैदान से भाग निकले। रूपमती को जब यह ज्ञात हुआ कि मुगलों की सेना उन्हें पकड़ने वाली है, तो उन्होंने अपना आत्मसम्मान बनाए रखते हुए जहर खा लिया और वीरगति प्राप्त की।

Roopmati history: एक तवायफ की कहानी जो बन गई इतिहास

रूपमती और बाज बहादुर की प्रेमगाथा आज भी लोक कथाओं, गीतों और इतिहास की किताबों में जीवित है। यह केवल एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, त्याग और सच्चे प्रेम का प्रतीक है। रूपमती (Roopmati history) की कहानी यह साबित करती है कि तवायफ होना केवल एक पेशा नहीं था, बल्कि एक कला, एक तहजीब थी, जो अपने समय की संस्कृति को संजोए हुए थी।

Roopmati history तवायफें: तहजीब और कला की प्रतीक

पूर्व IFS अधिकारी प्राण नेविल ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘नाच गर्ल्स ऑफ द राज’ में लिखा है कि 18वीं सदी तक भारत में तवायफों को समाज में ऊंचा दर्जा हासिल था। वे तहजीब, संगीत, और साहित्य की संरक्षक हुआ करती थीं। हालांकि, समय के साथ जब भारत में पश्चिमी शिक्षा और सोच का प्रभाव बढ़ा, तो तवायफों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। सम्मान की जगह उन्हें उपेक्षा मिली और जीविका के लिए उन्हें जिस्मफरोशी जैसे रास्तों पर धकेल दिया गया।

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