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इस्लाम में नस्ली और जाति भेदभाव नहीं है तो फिर मुसलमानों में कैसे आई जाति प्रथा?

इस्लाम के आखिरी पैंगबर मोहम्मद साहब ने अपने अंतिम भाषण में कहा था कि किसी अरबी को अज्मी (अरब से बाहर के लोग) पर, और किसी अज्मी को अरबी पर कोई श्रेष्ठता नहीं है, न किसी गोरे को काले पर, और न किसी काले को गोरे पर, सिवाय तकवे (परहेजगारी) के.’ इस बात के जरिए मोहम्मद साहब ने साफ तौर पर स्पष्ट संदेश दिया कि इस्लाम में इंसानों के बीच किसी तरह का नस्ली और जाति भेदभाव नहीं है. इंसान के अच्छे कर्म ही उसे श्रेष्ठ बनाते हैं ना कि वह जन्म के आधार पर श्रेष्ठ हो सकता है.

मशहूर शायर अल्लाम इकबाल लिखते हैं कि ‘एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद-ओ-अयाज,ना कोई बंदा रहा ना कोई बंदा नवाज.’ उन्होंने महमूद गजनवी और उनके गुलाम अयाज के एक ही लाइन में एक साथ नमाज पढ़ने पर लिखी थी. इकबाल ने इस शेर के जरिए यह बताने की कोशिश किया था कि इस्लाम धर्म के सभी मानने वाले बराबर हैं और उनमें किसी प्रकार की कोई ऊंच-नीच नहीं है.

इस्लाम में सभी बराबर
इस्लाम में कोई संदेह नहीं है कि नमाज के वक्त न कोई बादशाह होता है और न ही कोई गुलाम, सभी बराबर होते हैं, लेकिन ये नमाज के खत्म होते ही और मस्जिद के बाहर निकलते ही भारतीय मुसलमान भी हिंदुओं की तरह जातियों में बंटा हुआ नजर आता है. इस्लाम में जब कोई जात-पात नहीं और सभी बराबर हैं तो भारतीय मुस्लिम में जाति प्रथा कैसे आई? यह बात ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट बैठक के बाद देश में जाति आधारित जनगणना करवाने का एलान किया गया. इसमें हर धर्म और जाति से आने वाले लोगों की गिनती होगी.

मुसलमानों में कैसे आई जाति प्रथा
इस्लाम में जाति आधारित भेदभाव को मना किया गया. पैगंबर मोहम्मद साहब ने सभी मुसलमानों को एक बराबर माना तो फिर कैसे भारतीय मुस्लिम अलग-अलग जातियों में बंटा हुआ है. इस्लाम की शुरुआत हजरत आदम से हुई है और मोहम्मद साहब आखिरी नबी हैं. मोहम्मद साहब का जन्म मक्का शहर में हुआ, उस वक्त अलग-अलग कबीला बुआ करते थे. कुरैश, अंसार, बानू असद, बानू खजराज और बानू जुमा जैसे कबीले थे, जो परिवारों का छोटा समूह हुआ करता था. जनजाति हुआ करती थी. ये एक ही पूर्वज से संबंधित होते हैं, या जो एक ही क्षेत्र में रहते हैं और एक ही सामाजिक या सांस्कृतिक पहचान साझा करते हैं, अलग-अलग इलाके में अलग हुआ करते थे.

हिंदुओं में जाति व्यवस्था के दो उल्लेख मिलते हैं, ऋग्वेद में कर्म के आधार पर यानि जो जिस काम करता था, उससे उसके जाति निर्धारण होता था. मनुस्मृति में जन्म के आधार पर जाति के निर्धारण की बात कही गई है. मनुस्मृति के अनुसार चार वर्ण व्यवस्था में बांटा गया है, भगवान ब्राह्म के मस्तिष्क से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रीय, पेट से वैश्य और पैरों से दलित. भारत में इस्लाम आया तो तमाम हिंदू जातियों ने धर्मांतरण कर मुसलमान बन गए. उन्होंने अपना धर्म तो बदल लिया, लेकिन जाति नहीं बदली. इस तरह भारत में वैदिक काल में कर्म आधारित जाति व्यवस्था थी, जो कालांतर में जन्म आधारित हो गई, तो बिलकुल उसी पैटर्न पर मुसलमानों में भी जाति व्यवस्था मौजूद है.

देवबंदी उलेमाओं का जातिवाद
भारतीय उपमहाद्वीप यानी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों के बीच जातियां मौजूद हैं, यह उन्हें जन्म के आधार पर श्रेष्ठ और पिछड़ा बनाती हैं. ऐसे में मुस्लिम जातियां तीन वर्गों में बंटा हुआ है. इन्हें ‘अशराफ (उच्च जातियां)’,’अजलाफ (पिछड़ी जातियां)’, और ‘अरजाल’ (अतिपिछड़ी जातियां) कहा जाता है. ये जातियों के समूह हैं, जिसके अंदर अलग-अलग जातियां शामिल हैं. 1932 में मौलाना शफी उस्मानी ने मुस्लिमों जातियों का जिक्र किया और उन्होंने बताया कि कौन ऊंची जाति है और कौन पिछड़ी, कैसे शेख, सैय्यद और पठान उचे हैं और अंसारी, कुरैशी, मंसूरी पिछड़ी जातियां हैं.

मौलाना अशरफ अली थानवी ने बाहिश्ती जेवर में लिखा है कि कैसे शेख, सैय्यद बराबर हैं और मुगल व पठान को कुलीन मानते हुए कम आंका है. मुस्लिम ओबीसी जातियों को निम्न जाति के तौर पर उल्लेख किया है. शेख, सैय्यद, पठान और मुगल को मुस्लिम ओबीसी जातियों के साथ मना किया है. उन्होंने कहा कि शेख और सैय्यद बराबर हैं, उनके आपस में शादी हो सकती है, लेकिन मुगल और पठान के साथ नहीं.

मसूद आलम फलाही ने ‘भारत में जाति और मुसलमान’ किताब में मुसलमानों की जातियों का बराकी से वर्णन किया है. लिखते हैं कि मुसलमानों के बीच, विशेष रूप से काउ बेल्ट में, जाति संरचना कुल मिलाकर हिंदू जाति व्यवस्था की प्रतिकृति के समान है, जिसमें सभी तरह की कमियां हैं. यह समानता के समतावादी और उच्च इस्लामी सिद्धांतों के बावजूद है. उन्होंने कहा कि कैसे अशराफ मुस्लिम उलेमाओं और बुद्धजीवी ने अपने आपको को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए इस्लाम के समानता को भी जातियों में बांट दिया है.

मुसलमानों में जाति व्यवस्था
मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था है और उसका पैटर्न उसी तरह का है, जैसे हिंदुओं में सवर्ण, पिछड़ा और दलित. हिंदुओं में जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण होते हैं, वैसे ही अशराफ़, अजलाफ़ और अरज़ाल को देखा जाता है. दलित जातियां होती हैं, लेकिन उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है. मुस्लिम समुदाय की जातियां 3 प्रमुख वर्गों और सैकड़ों बिरादरियों में विभाजित है. उच्चवर्गीय मुसलमानों को अशराफ कहा जाता है, जिसमें सैय्यद, शेख, तुर्क, मुगल, पठान, रांगड़, कायस्थ मुस्लिम, मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुस्लिम आते हैं.

मुसलमानों के पिछड़े वर्ग की जातियों का अजलाफ कहा जाता है. अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, सलमानी, गुर्जर, गद्दी, घोसी, दर्जी, मनिहार, कुंजड़ा, तेली, सैफी, जैसी ओबीसी जातियां शामिल हैं. इसके बाद अतिपिछड़ी मुस्लिम आते हैं, जिनको अरजाल कहा जाता है, जिसमें धोबी, मेहतर, अब्बासी, भटियारा, नट, हलालखोर, मेहतर,भंगी, बक्खो, मोची, भाट, डफाली, पमरिया, नालबंद और मछुआरा शामिल हैं.

मुसलमानों में कुछ लोगों को तो लगता है कि मुसलमानों में जाति के आधार पर कोई भेद ही नहीं है तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मुसलमानों में भी जातियां तो हैं, लेकिन उनमें उतने गंभीर मतभेद हैं नहीं, जितना कि हिंदुओं में है. धर्म के आधार पर इनके बीच में कोई भेदभाव नहीं होता है, लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से इनके बीच अंतर है. सैय्यद खुद को सबसे श्रेष्ठ मानते हैं और एक सैय्यद शादी अपने समुदाय में ही करेगा, किसी और से नहीं करेगा.

मुसलमानों में भी जाति प्रथा पूरी तह से हिंदुओं की तरह ही काम करती है.विवाह और पेशे के अलावा मुसलमानों में अलग-अलग जातियों के रीति रिवाज भी अलग-अलग हैं.मुसलमानों में भी लोग अपनी ही जाति देखकर शादी ही नहीं करते बल्कि मुस्लिम इलाक़ों में भी जाति के आधार पर कॉलोनियां और मुहल्ले बने हुए दिखाई देते हैं. इसके अलावा उनके कब्रिस्तान भी कई जगह पर अलग-अलग हैं.पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल में तुर्क, लोधी मुसलमान रहते हैं. उनके बीच काफी तनाव रहता है. उनके अपने-अपने इलाके हैं.

जातिगत जनगणना से आएंगे आंकड़े
देश में जल्दी ही जाति आधारित जनगणना शुरू होने वाली है. इस जनगणना की खासियत यह होगी कि इसमें हिंदुओं के साथ मुसलमानों की भी जाति पूछी जाएगी और उनके आधार पर सरकार आगे की रणनीति बनाएगी. भारत एक जाति आधारित समाज है, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों ही ग्रसित है. इससे बता चल सकेगा कि मुसलमानों किस जाति की कितनी आबादी है और किस तरह का उनका सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति है. निश्चत तौर पर जाति आधारित जनगणना का लाभ उन जातियों के मुस्लिमों को मिलेगा, जो पिछड़े हैं.

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