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राजनीति

नितिन नवीन: बीजेपी की खास परंपरा के नायक, सीएम और प्रदेश अध्यक्ष से हटकर क्यों हैं अलग?

नई दिल्ली

बीजेपी ने 45 साल के नितिन नबीन को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर एक ऐसा रिकॉर्ड बना दिया है, जिसने पार्टी के भीतर और बाहर सभी को चौंका दिया है. 1980 में जन्मे नितिन नबीन अब बीजेपी के इतिहास के सबसे युवा अध्यक्ष हैं. लेकिन उनकी यह नियुक्ति सिर्फ युवा होने के कारण खास नहीं है. अगर आप बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्रियों और प्रदेश अध्यक्षों की सूची देखें, तो पता चलता है कि नितिन नबीन का कद और उम्र का समीकरण सबसे अलग क्यों है.

किसी भी बीजेपी मुख्यमंत्री से छोटे हैं नबीन

नितिन नबीन की उम्र महज 45 साल है. अगर हम देश भर में बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की सूची देखें, तो एक भी मुख्यमंत्री ऐसा नहीं है जो उम्र में उनसे छोटा हो. बीजेपी के सबसे युवा मुख्यमंत्री अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू हैं, जिनकी उम्र 46 वर्ष है. नितिन नबीन उनसे भी एक साल छोटे हैं. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ (53), उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी (50) और असम के हिमंत बिस्वा सरमा (56) जैसे फायरब्रांड नेता भी उम्र में नबीन से बड़े हैं. त्रिपुरा के सीएम मणिक साहा (72) और गुजरात के भूपेंद्र पटेल (63) तो उनसे एक पीढ़ी आगे हैं.यह आंकड़ा साबित करता है कि बीजेपी ने नेतृत्व की कमान अब पूरी तरह से ‘नेक्स्ट जेन’ (Next Gen) को सौंप दी है.

प्रदेश अध्यक्षों की भीड़ में भी सबसे अलग

सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं, देश के प्रमुख राज्यों में बीजेपी की कमान संभालने वाले प्रदेश अध्यक्ष भी नितिन नबीन से उम्रदराज हैं. राजस्थान के अध्यक्ष मदन राठौड़ (71) और झारखंड के बाबूलाल मरांडी (67) उम्र में उनसे काफी बड़े हैं. यहां तक कि उनकी खुद की होम स्टेट बिहार के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल (62) और उत्तर प्रदेश के भूपेंद्र चौधरी (57) भी वरिष्ठ हैं. केवल तमिलनाडु के के. अन्नामलाई (41) ही ऐसे नेता हैं जो नबीन से छोटे हैं, लेकिन बीजेपी ने उनकी जगह अब नैनार नागेंथिरन को प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया है. लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर 45 साल की उम्र में पहुंचना अपने आप में एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है. कर्नाटक के युवा चेहरा माने जाने वाले बी.वाई. विजयेंद्र भी 50 साल के हैं.

युवा जोश और अनुभव का अनोखा संगम

नितिन नबीन की खासियत यह है कि 45 साल की उम्र में उनके पास वो अनुभव है जो कई 60 साल के नेताओं के पास भी नहीं होता. इतनी कम उम्र में लगातार 5 बार विधायक (MLA) बनना यह दिखाता है कि वे जनता के बीच कितने लोकप्रिय हैं. उन्होंने बांकीपुर जैसी सीट को अपना गढ़ बना लिया है. वे बिहार सरकार में पथ निर्माण जैसे भारी-भरकम मंत्रालयों को संभाल चुके हैं. यानी उनके पास संगठन के साथ-साथ सरकार चलाने का भी हुनर है. वे रातों-रात नेता नहीं बने. उन्होंने 2 दशक संगठन को दिए हैं. भारतीय जनता युवा मोर्चा के बिहार अध्यक्ष से लेकर छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रभारी बनने तक का उनका सफर संघर्ष और सफलता का रहा है.

बीजेपी की इस खास परंपरा के नायक बनेंगे नितिन नवीन

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक बार फिर अपनी ‘युवा चेहरों को प्रमोट करने’ की रणनीति को मजबूत करते हुए बिहार के कैबिनेट मंत्री नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष (नेशनल वर्किंग प्रेसिडेंट) नियुक्त किया है. यह फैसला पार्टी के संसदीय बोर्ड द्वारा मंजूर किया गया है और वर्तमान राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) अरुण सिंह द्वारा जारी आदेश से यह निर्णय सार्वजनिक किया गया है. नितिन नबीन वर्तमा में बिहार सरकार में पथ निर्माण एवं नगर विकास मंत्री हैं, अब वह इस पद (राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष) पर जेपी नड्डा की जगह लेंगे. यह नियुक्ति न केवल बिहार में भाजपा की मजबूती को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करती है, बल्कि पार्टी की उस पुरानी परंपरा को भी जोड़ती है जहां राष्ट्रीय महासचिव या कार्यकारी अध्यक्ष जैसे पदों पर रहते हुए नेता बाद में पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाते हैं.
युवा चेहरा, बड़ा संदेश

45 वर्ष के नितिन नबीन का यह प्रमोशन युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने का संकेत है, लेकिन सवाल उठ रहा है- क्या वे अगले पूर्णकालिक अध्यक्ष बनने की दौड़ में हैं? नितिन नबीन का BJP में सफर संघर्षपूर्ण और तेजी से ऊपर उठने वाला रहा है. पार्टी ने उन्हें हमेशा महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी हैं जो उनकी संगठनात्मक क्षमता और चुनावी सफलता का प्रमाण हैं. वे दो बार राष्ट्रीय महामंत्री (युवा मोर्चा) रह चुके हैं जहां उन्होंने युवाओं को पार्टी से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई. बिहार में वे प्रदेश अध्यक्ष (युवा मोर्चा) के रूप में सक्रिय रहे, जिससे राज्य स्तर पर BJP की युवा शाखा मजबूत हुई. इसके अतिरिक्त वे सिक्किम के प्रभारी और वर्तमान में छत्तीसगढ़ के प्रभारी के रूप में भी काम कर चुके हैं जहां उन्होंने पूर्वोत्तर और मध्य भारत में पार्टी का विस्तार किया.
संगठन से सत्ता तक का संतुलन

चुनावी मोर्चे पर नितिन नबीन का रिकॉर्ड भी शानदार है. 2006 में वे पहली बार विधायक बने जब बिहार विधानसभा चुनाव में बांकीपुर (पटना शहर का एक विधानसभा क्षेत्र) जीत दर्ज की. तब से वे लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं-2010, 2015 और 2020 में भी बांकीपुर से ही BJP के टिकट पर सफल रहे. 2021 में नीतीश कुमार सरकार में उन्हें पहली बार पथ निर्माण मंत्री बनाया गया और अब वे पथ निर्माण के साथ-साथ नगर विकास विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. इन उपलब्धियों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और आज यह नियुक्ति उनके संगठनात्मक कौशल का इनाम है.
BJP की ‘अध्यक्ष परंपरा’ का पैटर्न

बिहार के नितिन नबीन की नियुक्ति BJP की उस परंपरा से जुड़ती है जहां राष्ट्रीय महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) या कार्यकारी अध्यक्ष जैसे पदों पर रहते हुए कई नेता बाद में पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं. पार्टी के इतिहास में यह एक साफ पैटर्न दिखता है, जहां RSS पृष्ठभूमि वाले या संगठन प्रबंधक नेता इस ‘ट्रांजिशन’ से गुजरते हैं. प्रमुख उदाहरणों की बात करें तो अमित शाह (Amit Shah) बीजेपी के वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह 2010 में राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बने. इस पद पर रहते हुए उन्होंने 2014 लोकसभा चुनावों में पार्टी को 282 सीटें दिलाने में अहम भूमिका निभाई. उसी वर्ष जुलाई 2014 में वे पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और 2020 तक इस पद पर रहे. शाह का कार्यकाल BJP का ‘गोल्डन पीरियड’ माना जाता है जब पार्टी ने 2019 में 303 सीटें जीतीं. यह परंपरा का बेहतरीन उदाहरण इस मायने में भी है कि जहां महासचिव से अध्यक्ष बनने का सफर सिर्फ चार साल का रहा.
नितिन नवीन का बढ़ता सियासी कद

वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का सफर भी इसी परंपरा का हिस्सा है. वे 2010 में हिमाचल प्रदेश सरकार से मंत्री पद छोड़कर राष्ट्रीय महासचिव बने. 2014-2019 तक वे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे, लेकिन 2019 में अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद वे राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष (वर्किंग प्रेसिडेंट) नियुक्त हुए. जनवरी 2020 में वे पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और आज तक इस पद पर हैं. नड्डा की नियुक्ति ने BJP को महामारी काल में स्थिरता दी और 2024 लोकसभा चुनावों में NDA की जीत में उनकी भूमिका सराहनीय रही. उनका ट्रांजिशन महासचिव से कार्यकारी अध्यक्ष होते हुए पूर्ण अध्यक्ष पद तक पहुंचा जो नितिन नबीन के लिए एक मॉडल हो सकता है.
बिहार से दिल्ली तक पावर शिफ्ट?

जानकारों की नजर में ये उदाहरण BJP की आंतरिक प्रणाली को दर्शाते हैं, जहां राष्ट्रीय महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) पद को ‘अध्यक्ष पद का इनक्यूबेटर’ माना जाता है. जानकारी के अनुसार, 1980 में BJP की स्थापना के बाद से 11 राष्ट्रीय अध्यक्षों में से कम से कम चार (अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह और लालकृष्ण आडवाणी) ने महासचिव या समकक्ष पद संभाला था. हालांकि, यह हमेशा गारंटीड नहीं होता-जैसे नितिन गडकरी (2009-2013 अध्यक्ष) सीधे संगठन से आए थे और वह भी बिना महासचिव बने हुए. फिर भी, RSS प्रभावित नेताओं के लिए यह ट्रैक रिकॉर्ड मजबूत कहा जा सकता है. नितिन नबीन के मामले में राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह नियुक्ति 2029 के राष्ट्रीय चुनावों से पहले उनकी टेस्टिंग हो सकती है. क्या नितिन नबीन अगले अमित शाह साबित होंगे? समय का इंतजार कीजिये.

पूर्वी भारत से पहला अध्यक्ष

नितिन नबीन की नियुक्ति का एक और ऐतिहासिक पहलू है. वे बीजेपी के इतिहास में पहले ऐसे अध्यक्ष हैं जो न केवल बिहार से हैं, बल्कि पूरे पूर्वी भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं. अब तक बीजेपी अध्यक्ष अक्सर पश्चिमी, दक्षिणी या उत्तरी भारत से होते थे. जेपी नड्डा का भी बिहार से कनेक्शन था, लेकिन नबीन का पूर्ण रूप से बिहार और पूर्व का चेहरा होना, उस क्षेत्र में बीजेपी की बढ़ती महत्वाकांक्षा को दर्शाता है. मुरली मनोहर जोशी उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. नितिन नबीन का चयन बताता है कि पीएम मोदी और अमित शाह 2029 और उसके बाद के भारत की तस्वीर देख रहे हैं. एक ऐसा अध्यक्ष जो देश के किसी भी मुख्यमंत्री से छोटा हो, लेकिन अनुभव में किसी से कम न हो, यही बीजेपी का नया ‘मास्टरस्ट्रोक’ है.

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