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ऑपरेशन सिंदूर की बहादुर विंग कमांडर निकिता पांडे कौन हैं, और क्यों चर्चा में हैं?

पहलगाम हमले को लेकर हुए ऑपरेशन सिंदूर और बालाकोट में अहम भूमिका निभाने वाली देश की रक्षक बनी बहादुर विंग कमांडर निकिता पांडे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से आए एक फैसले को लेकर है चर्चे में.

पहलगाम हमले को लेकर हुए ऑपरेशन सिंदूर और बालाकोट में अहम भूमिका निभाने वाली देश की रक्षक बनी बहादुर विंग कमांडर निकिता पांडे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से आए एक फैसले को लेकर है चर्चे में।

पहलगाम हमले को लेकर हुए ऑपरेशन सिंदूर और बालाकोट में अहम भूमिका निभाने वाली देश की रक्षक बनी बहादुर विंग कमांडर निकिता पांडे का नाम आज हर तरफ चर्चा में है. ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन बालाकोट जैसे बड़े सैन्य अभियानों में अहम भूमिका निभाने वाली इस बहादुर महिला अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। ​​कोर्ट ने भारतीय वायुसेना को आदेश दिया है कि फिलहाल निकिता को सेवा से न हटाया जाए, क्योंकि उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित करना गलत है। यह फैसला न सिर्फ निकिता बल्कि देश की सभी महिला सैन्य अधिकारियों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। आइए आखिर पुर मामला क्या था और निकिता पांडे इसमें कैसे शामिल हुई।

कौन हैं निकिता पांडे?
निकिता पांडे का सफ़र 2011 में ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ (SSC) के ज़रिए शुरू हुआ था। करीब 13 साल से निकिता वायुसेना में विंग कमांडर के पद पर हैं। फाइटर कंट्रोलर के तौर पर निकिता ने ऑपरेशन बालाकोट और हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर में अपने बहादुरी भरे रणनीतिक कौशल का परिचय दिया। दोनों ही ऑपरेशन देश की सुरक्षा के लिए बेहद अहम थे और निकिता ने इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) में एक विशेषज्ञ की भूमिका निभाई। वह देश की चुनिंदा फाइटर कंट्रोलर्स में शामिल हैं जो मेरिट लिस्ट में दूसरे नंबर पर हैं।

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IIAF चयन प्रक्रिया: निकिता पांडेय का चयन कब और कैसे हुआ?
भारतीय वायुसेना में अधिकारियों की जानकारी आमतौर पर गोपनीय रखी जाती है, इसलिए निकिता पांडेय की शैक्षणिक पृष्ठभूमि की सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, वायुसेना में शामिल होने के लिए सामान्य योग्यता 10+2 (साइंस स्ट्रीम में भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित) और स्नातक डिग्री होती है।

निकिता का चयन 2011 में शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के माध्यम से भारतीय वायुसेना में हुआ था। यह प्रक्रिया सर्विस सिलेक्शन बोर्ड (SSB) द्वारा आयोजित की जाती है, जिसमें लिखित परीक्षा, इंटरव्यू, शारीरिक और चिकित्सा परीक्षण शामिल होते हैं। चूंकि वे फाइटर कंट्रोलर हैं, इसलिए यह माना जा सकता है कि उन्होंने साइंस या तकनीकी क्षेत्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की होगी। निकिता ने 2011 से लेकर अब तक 13.5 वर्षों से अधिक सेवा दी है। इस दौरान उन्होंने ऑपरेशन बालाकोट (2019) और ऑपरेशन सिंदूर (2025) जैसे महत्वपूर्ण अभियानों में योगदान दिया।

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सुप्रीम कोर्ट में निकिता पांडेय का मामला: क्या है पूरा विवाद?
निकिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित कर भेदभाव किया गया। 2011 में SSC के जरिए सेवा में आने के बाद उनकी कार्यकाल 19 जून 2025 तक बढ़ाई गई, लेकिन फिर उन्हें रिटायर होने के लिए कहा गया। कारण बताया गया कि 2019 की एक नीति के तहत वह स्थायी कमीशन के लिए अयोग्य हैं।

निकिता के वकीलों की दलील:
वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी और वकील आस्था शर्मा ने अदालत में कहा कि निकिता की रणनीतिक विशेषज्ञता को देखते हुए उन्हें ऑपरेशन सिंदूर जैसे मिशन के लिए चुना गया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 1992 से महिलाएं वायुसेना में शामिल हो रही हैं, लेकिन आज भी उन्हें केवल SSC का विकल्प मिलता है, जबकि पुरुष अधिकारियों को स्थायी कमीशन का अवसर प्राप्त होता है। उन्होंने सवाल उठाया कि तकनीक और परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं, तो 30 साल पुरानी नीतियों के आधार पर महिलाओं को क्यों वंचित किया जाए? यदि वे सभी मानदंडों पर खरी उतरती हैं, तो केवल जेंडर के आधार पर भेदभाव क्यों?

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि एक पेशेवर सैन्य संगठन में अधिकारियों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता उचित नहीं है। कोर्ट ने माना कि भारतीय वायुसेना दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक है, और ऐसे में योग्य अधिकारियों को करियर में स्पष्टता मिलनी चाहिए।

कोर्ट ने सरकार को सलाह दी कि SSC के तहत भर्ती होने वाले अधिकारियों की संख्या को स्थायी कमीशन के अवसरों से जोड़ा जाए। यदि कोई अयोग्य है, तो वह अलग बात है, लेकिन प्रतिस्पर्धा के नाम पर योग्य लोगों को वंचित करना गलत है।

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फैसले का महत्व:
निकिता पांडेय पहली ऐसी वायुसेना की SSC अधिकारी बनी हैं जिन्हें सेवा समाप्ति से पहले सुप्रीम कोर्ट से अस्थायी राहत मिली है। इससे पहले मई 2025 में सेना की 50 से अधिक SSC महिला अधिकारियों को भी इसी तरह की राहत मिल चुकी है। यह फैसला सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता (Gender Equality) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। निकिता दो बार स्थायी कमीशन की प्रक्रिया में शामिल हो चुकी हैं और अब तीसरे और अंतिम चयन बोर्ड का इंतजार कर रही हैं। कोर्ट ने आदेश दिया है कि अंतिम निर्णय तक निकिता को सेवा से नहीं हटाया जाएगा। अगली सुनवाई 6 अगस्त 2025 को होगी।

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