
डॉ संतोष मानव
आवारा मीडिया का बाजार भाव कितने करोड़ का है। सौ, हजार या हजारों करोड़? जवाब है लाखों करोड़! चौंकिए नहीं, यह सौ प्रतिशत सच है। अगर गाली खाने और गाली देने की क्षमता हो, तो आप भी आवारा मीडिया से कमाई कर सकते हैं। इसके लिए बुद्धिमान होना आवश्यक नहीं है। बस, आपको पक्षपाती और आवारा होना पड़ेगा। अनेक पक्षपाती, भाड़े के टट्टू लाखों नहीं, करोड़ों में कमाई कर भी रहे हैं। नीर-क्षीर-विवेकी रहकर आप कमाई नहीं कर सकते हैं।
क्या होता है आवारा मीडिया
पहला सवाल कि आखिर यह आवारा मीडिया है क्या ? हम-आप जिसे कहते हैं सोशल मीडिया, वही है आवारा मीडिया। वह माध्यम (मीडिया) जहां आवारगी है, आवारापन की खुली छूट है। जहां अंकुश नहीं है, और है भी तो बेमतलब-सा। ऐसा अंकुश जिसका असर ही नहीं दिखता। ऐसा माध्यम, जो इंटरनेट आधारित है, वह है आवारा मीडिया।
इंटरनेट पर क्या-क्या
इंटरनेट पर क्या-क्या आधारित है? तो जवाब है- वेबसाइट, वेब पोर्टल, न्यूज़ वेबसाइट, न्यूज़ पोर्टल, ब्लॉग, वेबकास्ट, पाडकास्ट, ई-पेपर, डिजिटल रेडियो, डिजिटल टीवी, वेब टीवी, वेब सीरीज, ओवर द टाप (ओटीटी प्लेटफार्म), ई कामर्स, सोशल मीडिया, सोशल नेटवर्किंग साइट, मोबाइल एप्लिकेशंस आदि-आदि। इन सब को दो शब्दों में कहते हैं -डिजिटल मीडिया। इसे आप इंटरनेट मीडिया आनलाइन मीडिया, ई-मीडिया, वेब मीडिया, साइबर मीडिया, न्यू मीडिया आदि भी कहते हैं। पर जब हम आवारा मीडिया कहते हैं, तो समझिए सोशल मीडिया और ओटीटी।
सोशल मीडिया का सच
सोशल मीडिया यानी फेसबुक, youtube, इंस्टाग्राम या ऐसे ही दूसरे सैकड़ों सोशल ऐप। ये सब आवारा मीडिया के बेहतरीन उदाहरण हैं। इन सोशल ऐप्स पर नंगई है, अश्लीलता है, गाली-गलौज है, सेक्स क्लिप हैं, यानी जितने वर्जित विषय हैं, शब्द हैं, यहां सब हैं. वे ऐप्स, जहां हर ऐरा-गेरा-नत्थू खैरा पत्रकार -लेखक-कवि-साहित्यकार है। उपदेशक, आंदोलनकारी, क्रांतिकारी है, जहां कोई किसी से कम नहीं है।
Youtube कितना बांटता है?
खबर है कि youtube ने तीन साल में भारतीय क्रिएटर्स (वीडियो बनाने वाले) के बीच इक्कीस हजार करोड़ रुपए बांटे। यानी साल के सात हजार करोड़ और प्रति माह लगभग छह सौ करोड़ से ज्यादा। और किसे बांटा? क्रिएटर्स कौन? वही जिनमें से आधे से ज्यादा को सिर्फ अक्षर ज्ञान है। जो नासमझ-बुड़बक, आवारा हैं। इसीलिए तो आवारा मीडिया से कमाई कर रहे हैं।
आवारा मीडिया से कमाई
आप इंस्टाग्राम, फेसबुक या youtube जैसे ऐप्स पर कुछ शर्तों को पूरा कीजिए और कमाई कीजिए। नंगई, व्यभिचार, अश्लीलता परोस कर कमाई कर सकते हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम पर कैसे -कैसे रील हैं? देखा है कभी? अफसोस होगा कि बनाने वाले ने क्या बना दिया ? मनोरंजन के नाम पर क्या परोसा जा रहा है। वर्जित विषय और शब्द जहां धड़ल्ले से यूज होते हैं।
यह भी एक सच है
लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि सारे क्रिएटर्स ऐसे हैं। कुछ अच्छे भी हैं। पर बोलबाला कुपढ़, अश्लीलता, व्यभिचार परोसने वालों का ही है। ये लोग गंदगी फैलाकर नगदी बटोर रहे हैं।
आप सोचिए कि अगर यू ट्यूब प्रति वर्ष सात हजार करोड़ बांट रहा है, तो उसकी खुद की कमाई क्या होगी? कितने लाख करोड़? प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले यूं ही नहीं परेशान हैं कि उनका सारा विज्ञापन ये सोशल ऐप्स वाले खा गए। मीडिया हाऊस चलाने वाले सेठ परेशान हैं।
पर तमाम अश्लीलता, नंगई, गंदगी के बावजूद इन ऐप्स से दो सकारात्मक काम भी हो रहा है। एक तो यह कि इसने बोलने की आजादी दी। जिनको अखबार -पत्रिकाओं में जगह नहीं मिल पाती थी, वे यहां स्पेस पाते हैं। अपनी बात कह पाते हैं। और दूसरा यह कि हुनरमंद यहां से अर्जित भी कर लेते हैं। इस उदाहरण से समझिए – पिछले दिनों घर पेंट करवाया। चार- पांच सौ के दिहाड़ी पेंटर ने मुझसे मोबाइल नंबर लिया। कहा कि मेरे इंस्टाग्राम एकाउंट से जुड़ जाइए। बताया कि पेंटिंग से जितनी कमाई होती है, लगभग उतनी ही कमाई वह इंस्टाग्राम के लिए रील बनाकर करता है। यानी आवारा मीडिया आवारा तो है, लाखों का सहारा भी है। क्या नहीं? (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। राजनीति और समाज पर पैनी नजर रखते हैं और लिखते हैं)