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बैलगाड़ियों पर आजमगढ़ से उज्जैन आए थे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के पूर्वज

वरिष्ठ पत्रकार - लेखक डॉ संतोष मानव की किताब -'एमपी के नेताजी' में खुलासा

एस मनु
भोपाल: मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के पूर्वज उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से उज्जैन बैल गाड़ियों पर सवार होकर आए थे। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ संतोष मानव की पुस्तक – ‘एमपी के नेताजी’ में यह खुलासा हुआ है। डॉ मानव की किताब एक सप्ताह के अंदर बाजार में होगी। दिल्ली का समय प्रकाशन इस किताब को प्रकाशित कर रहा है।
किताब के प्रकाशक ‘समय प्रकाशन’ के निदेशक चंद्रभूषण ने बताया कि डॉ मानव ने कई माह के रिसर्च के बाद यह किताब लिखी है। इसमें अनेक ऐसी बातें हैं, जो अब तक प्रकाश में नहीं आई थी। किताब में मोहन यादव का संघर्ष, उनकी जिद और तीखे संघर्ष का सप्रमाण उदाहरण है। चंद्रभूषण ने कहा कि इस किताब में जीवनी जैसा कुछ नहीं है। यह एक चलचित्र की तरह है और उपन्यास का आनंद देती है। चंद्रभूषण के अनुसार किताब का विमोचन देश के सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी करेंगे।
चंद्रभूषण ने किताब का एक अंश जारी किया है, जो इस प्रकार है-
दूसरी बात भी सच ही है। मोहन यादव के पूर्वज उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के किसी गांव से उज्जैन पहुंचे थे। किस कारण से पूर्वजों ने गांव छोड़ा, यह बता पाना तो कठिन है, लेकिन आजमगढ़ से उज्जैन आने की बात में दम है- अमूमन देशाटन, अकाल, गरीबी, रोजगार, किसी तरह के भय आदि के लिए लोग घर- इलाका छोड़ते हैं। मोहन यादव के सबसे बड़े भाई हैं नंदलाल यादव। वे उम्र में डॉ मोहन यादव से लगभग पंद्रह साल बड़े हैं। उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक को बताया – हां, यह बात सच है। तीन – चार सौ साल पहले की बात है। हमारे पूर्वज अनेक बैलगाड़ियों पर सवार होकर आज के आजमगढ़ से निकले थे। वे महेश्वर पहुंचे थे। महेश्वर से इंदौर आए। कुछ बैलगाड़ियां देपालपुर – बदनावार होते हुए रतलाम पहुंची। इन बैलगाड़ियों पर सवार लोग रतलाम में बस गए। कुछ बैलगाड़ियां सांवेर होते हुए उज्जैन आ गईं। इन बैलगाड़ियों पर ही हमारे पूर्वज सवार थे। हम उनके ही वंशज हैं।
सोलहवीं पीढ़ी के डॉ मोहन यादव
अमूमन पच्चीस साल में पीढ़ी बदल जाती है, यानी उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश आए यादव परिवार की बारहवीं से सोलहवीं पीढ़ी से हैं डॉ मोहन यादव। नंदलाल यादव से यह पूछने पर कि क्या आपको उन सज्जन का नाम पता है, जो उज्जैन में बसे थे?? जो आपके पूर्वज थे??? नंदलाल यादव कहते हैं कि यह उनके वंश लेखक (चारण- भाट) बता सकते हैं। वे कभी-कभार आते हैं। उनका कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। वे देश भर में घूमते रहते हैं। वे मोबाइल फोन भी नहीं रखते। कभी भी अचानक आ जाते हैं। उन्होंने ही पूर्वजों के उत्तर प्रदेश से उज्जैन आने की कहानी बताई थी। उनके पास पूरी वंश पत्रिका है। जहां तक मेरा सवाल है, मुझे अपने परबाबा (दादा के पिता) तक का नाम याद है।
नंदलाल यादव बताते हैं – मेरे परबाबा या परदादा का नाम था नाना साहब यादव। उनके पुत्र थे मेरे दादा यानी रामचंद्र यादव। रामचंद्र यादव के तीन पुत्र थे। पूनमचंद यादव यानी मेरे पिता, शंकरलाल यादव और मुन्ना यादव। मुन्ना यादव का बहुत कम उम्र में देहांत हो गया था। ——–।

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