हरियाणा विधानसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर सियासी संग्राम, घंटों हंगामे के बाद सीएम हुड्डा की सहमति से थमा विवाद

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हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान शुक्रवार को राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ पर शुरू हुई चर्चा ने सदन को सियासी अखाड़े में बदल दिया। शून्यकाल में उठी एक वैचारिक बहस कई घंटों के हंगामे के बाद दस कांग्रेस विधायकों के नेम, मार्शलों के साथ धक्का-मुक्की, नारेबाजी, और अंततः मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सहमति से सुलह तक पहुंची।
विवाद की शुरुआत कांग्रेस विधायक आदित्य सुरजेवाला के भाषण से हुई। उन्होंने ‘वंदे मातरम’ की हर पंक्ति को पर्यावरणीय संकट से जोड़ते हुए सवाल खड़े किए। सुरजेवाला ने भावुक लहजे में कहा- ‘जिस मां के दूध को जहर बना दिया, उसे प्रणाम करने का नैतिक अधिकार किसे है। आदित्य के भाषण पर परिवहन मंत्री अनिल विज ने कड़ी आपत्ति जताई। बहस तीखी हुई। बादली विधायक कुलदीप वत्स ने भाजपा को घेरा।
शून्यकाल के बाद विधायक घनश्याम ने ‘वंदे मातरम’ पर चर्चा का प्रस्ताव रखा, जिसे स्पीकर हरविन्द्र कल्याण ने स्वीकार कर लिया। लंच के बाद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने चर्चा की शुरुअात की। सीएम ने ‘वंदे मातरम’ को सबके लिए वंदनीय, युवाओं के लिए प्रेरणादायक बताया और इसके ऐतिहासिक महत्व पर कहा कि एक दौर में पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी इसकी गूंज से अपनी कुर्सी डोलती नजर आई। इतना सुनते ही कांग्रेस विधायक भड़क उठे। हुड्डा समेत कांग्रेस विधायक वेल में पहुंच गए, नारेबाजी शुरू हो गई और सदन की कार्यवाही ठप होने लगी।
स्पीकर हरविन्द्र कल्याण ने नियमों के उल्लंघन पर कांग्रेस के दस विधायकों- कुलदीप वत्स, बलराम दांगी, इंदूराज भालू, अशोक अरोड़ा, गीता भुक्कल, शंकुलता खटक, जस्सी पेटवाड़, देवेंद्र हंस, नरेश सेलवाल और विकास सहारण को नेम कर दिया। इसके बावजूद विधायक नहीं उठे, तो स्पीकर ने मार्शल बुलाने के निर्देश दिए। इस दौरान जस्सी पेटवाड़, विकास सहारण, बलराम दांगी और नरेश सेलवाल को मार्शलों ने जबरन बाहर निकाला।संसदीय कार्य मंत्री महिपाल ने कांग्रेसियों के हंगामे पर कहा कि वंदे मातरम पर सही और दुरुस्त जानकारी देना सदन का फर्ज है। सहकारिता मंत्री अरविंद शर्मा ने कहा कि विरोध हो, लेकिन कोई वेल में न पहुंचे, ऐसे प्रबंध हों। कैबिनेट मंत्री कृष्ण बेदी ने तंज कसा- ‘वेल में आना एक फैशन बन चुका है।’नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने संसदीय परंपराओं का हवाला देते हुए लंबी बहस के बाद मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि नेम किए गए विधायकों को वापस बुलाया जाए। मुख्यमंत्री नायब सैनी ने भी स्पीकर से अनुरोध किया। इसके बाद स्पीकर ने सभी कांग्रेस विधायकों को सदन में बुला लिया और कई घंटों बाद सदन में शांति लौटी।
150 साल का मंत्र, 75 साल का संविधान
मुख्यमंत्री ने ‘वंदे मातरम’ को सिर्फ गीत नहीं, सांस्कृतिक प्रतिकार बताया। उन्होंने कहा कि 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह मंत्र स्वाधीनता आंदोलन की आत्मा बना। 1905 के स्वदेशी आंदोलन से लेकर 1947 तक इसने बलिदान, त्याग और तपस्या की ज्वाला जगाई। 15 अगस्त, 1947 को पंडित ओंकार नाथ ठाकुर के गायन से देश भावुक हुआ। सीएम ने कहा- ‘यदि वंदे मातरम की भावना न होती, तो हम आज इस सदन में न होते।’
हुड्डा का तंज- अब भाजपा वाले सिखाएंगे वंदे मातरम
सीएम की टिप्पणी पर भाजपा विधायकों की ओर से उठाए जा रहे सवालों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि 16 फरवरी, 1921 को रोहतक में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय और मौलाना आजाद आये। उस ऐतिहासिक सभा में 25,000 लोग जुटे थे, जिसकी अध्यक्षता मेरे दादा चौ. मातूराम ने की थी। मेरे दादाजी, मेरे पिताजी ने वंदे मातरम कहा और मैं भी गर्व से वंदे मातरम कहता हूं। मुझे गर्व है कि वंदे मातरम को उस संविधान सभा ने राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया, जिसमें मेरे पूजनीय पिताजी चौ. रणबीर सिंह हुड्डा सदस्य थे। अब क्या भाजपा वाले हमें वंदे मातरम सिखाएंगे?



