पटियाला महाराजा भूपिंदर सिंह की खुराक थी जबरदस्त, 15 पराठे, कई प्लेट कबाब, गटक जाते थे एक बार में

कहा जाता है कि पटियाला के महाराजा पराठों के बहुत शौकीन थे. लंच और डिनर पर 15 तरह तरह के पराठे गटक जाते थे.साथ में कबाब की कई प्लेटें और भी बहुत कुछ. साथ में पटियाला पैग चलता ही रहता था. उनके पराठों में एक खास पराठा होता था मखमली पराठा.
पटियाला के महाराजा और उनके खाने-पीने के शौक का ज़िक्र पुराने दस्तावेज़ों और किस्सों में बड़ी दिलचस्पी से आता है. खासकर महाराजा भूपिंदर सिंह का, जो पटियाला के सबसे रंगीले और शौकीन नवाबों में गिने जाते थे. उनके दौर का शाही किचन, ज़ायके, और खाने की परंपरा सचमुच एक गजब की कहानी है. महाराजा के खुराक के बारे में आगे बताएंगे ही.
पटियाला के महाराजा और उनका भोजन प्रेम
महाराजा भूपिंदर सिंह न केवल खाने-पीने बल्कि अनूठे व्यंजनों के बहुत शौकीन माने जाते थे. उन्हें पराठे खासकर घी में तले हुए मलमल पराठे बहुत पसंद थे.
हर खाने में उनकी थाली में कम से कम 5-6 तरह के पराठे पेश किए जाते थे. फिर वह तेजी के साथ ये पराठे खाते चले जाते थे. उन्हें ये फिर परोसा जाता था. इन पराठों में कीमा पराठा, दाल भरवा पराठा, सूखे मेवे का पराठा और मटन रोगन जोश पराठा जैसे नायाब स्वाद होते थे.
‘मखमल पराठा’ नाम सुनते ही ज़हन में रेशमी मुलायम परतों वाला घी से चमचमाता एक शानदार पराठा तस्सवुर में आता है. असल में मखमल पराठा भारतीय शाही रसोईयों की एक बेहद नायाब और लुप्त हो चुकी डिश है, जिसका ज़िक्र खासकर पटियाला, अवध, और हैदराबाद की दरबारी बावर्चीखानों में मिलता है.
ये ‘मखमली’ यानी मखमल जैसी मुलायम बनावट और स्वाद के चलते पड़ा. यह आम पराठे से बिल्कुल अलग था. बारीक परतों वाला. घी में बहुत धीरे-धीरे सेंका हुआ और खासतौर पर बादाम, पिस्ता, केवड़ा, और केसर के लेप में तैयार किया जाता था.
इस पराठे के आटे में महीन मैदा और थोड़ा अरारोट मिलाया जाता था ताकि परतें बहुत बारीक और मुलायम बनें. घी से परत-दर-परत बेलकर कम आंच पर दम में सेंका जाता था, जिससे उसका टेक्सचर बिलकुल रेशमी मखमल जैसा हो जाए. पराठे के बीच में कभी-कभी मावा (खोया), सूखे मेवे, या कीमा भी भरा जाता था. इसके ऊपर परोसने से पहले गुलाब जल, केवड़ा जल या केसर का अर्क छिड़का जाता था.
इसे चांदी के थाल में रखा जाता था. कभी-कभी इस पर सोने-चांदी के वर्क भी लगाए जाते थे. इसे शाही कबाब, निहारी, या दम-ए-पटियाला के साथ परोसा जाता था. पटियाला के दरबार में इसे खासकर सर्दियों में रात के भोज के समय परोसा जाता था. लखनऊ के नवाबी दौर में भी शाही दस्तरख़्वान का हिस्सा रहा. बाद में कुछ रूपों में हैदराबाद के किचन में इसे शीरमाल की तरह मीठे फ्लेवर में भी बनाया गया.
कहा जाता है कि पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह को जब कोई खास दावत अपने अंग्रेज़ मेहमानों के लिए रखनी होती, तो वे ‘मखमल पराठा’ ज़रूर बनवाते थे. एक बार एक अंग्रेज़ जनरल ने इसे खाकर कहा, “ये तो मेरी बीवी के हाथ से भी ज्यादा मुलायम है.”
महाराजा का खाना चांदी और सोने की थालियों में परोसा जाता था. कभी-कभी जड़े हुए हीरे-मोती की थाल भी इस्तेमाल होती थी. हर व्यंजन को अलग-अलग रसोइया परोसता था. भोजन से पहले और बाद में खास पान-दान पेश किया जाता था.
महाराजा की थाली में क्या क्या होता था
महाराजा भूपिंदर सिंह एक बार में 15 के आसपास पराठे होते थे. जिसे वो आराम से गटक जाते थे. वो भी हल्के-फुल्के नहीं, बल्कि घी में तले, कीमे, मेवे या मखमल पराठे. साथ में उनकी थाली के साथ 2-3 प्लेट कबाब, एक कटोरी मलाईदार दाल और दम में पका मटन भी होता था.
उनकी खुराक इतनी भारी थी कि एक अंग्रेज़ गवर्नर ने अपने पत्र में लिखा, पटियाला का महाराजा पांच आदमियों के बराबर खाता है.” महाराजा पराठों के साथ पटियाला पेग भी लेते रहते थे. महाराजा को भूख की कोई सीमा नहीं थी, और उनकी तोंद व भारी शरीर का किस्सा तो हर ब्रिटिश दस्तावेज़ में दर्ज है.कैसा था शाही किचन, रोज 40-50 पकवान
पटियाला का शाही बावर्चीख़ाना 20वीं सदी की शुरुआत में भारत के सबसे भव्य किचनों में गिना जाता था.इसमें 50 से ज्यादा बावर्ची और खास रसोइए काम करते थे. हर दिन 40-50 तरह के पकवान बनते थे. अलग-अलग रसोइयों को विशेष व्यंजन बनाने के लिए महाराजा ने दूसरे राज्यों, लखनऊ, काबुल, अवध, और अफगानिस्तान से बुलाया था.