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MP News: मंत्रियों की हालत खराब है, किस -किस की जाएगी कुर्सी?

संन्यासिन की इच्छा का सम्मान करेगी बीजेपी?

दिनेश निगम ‘त्यागी’
वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा करने वालीं भाजपा की वरिष्ठ नेता साध्वी उमा भारती ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। उन्होंने कहा है कि चूंकि उनका गांव झांसी के नजदीक है,इसलिए वे वहां से ही चुनाव लड़ना चाहेंगी। झांसी से वर्तमान में भाजपा के अनुराग शर्मा सांसद हैं। उमा ने यह भी कहा है कि मेरे चुनाव लड़ने के लिए जरूरी है कि भाजपा उन्हें टिकट दे और दूसरा, अनुराग मेरे लिए सीट छोड़ने के लिए तैयार हों। उमा पहले भी झांसी से सांसद रह चुकी हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भी उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी लेकिन बाद में वे चुनाव नहीं लड़ीं। भाजपा नेतृत्व ने उन्हें टिकट नहीं दिया या कोई और वजह थी, यह उमा अथवा पार्टी ही बता सकती है। उमा ने कहा है कि 2024 के चुनाव के समय चूंकि अयोध्या में राम मंदिर का शुभारंभ होना था, इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ीं। अब भाजपा नेतृत्व उमा की इच्छा का सम्मान कर 2029 के चुनाव में झांसी से उन्हें टिकट देता है या नहीं, यह वक्त बताएगा। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि उमा लंबे समय से पार्टी में साइडलाइन हैं लेकिन वे खुद यह स्वीकार नहीं करतीं। उनका कहना है कि मैं राजनीति में हाशिए पर नहीं हूं, गाय और गंगा के लिए दिल से कार्य कर कर रही हूं, इसके अलावा पॉलिटिक्स में मेरी और कोई रुचि नहीं है।
‘गुजरात मॉडल’ की तर्ज पर होगा मंत्रियों का इस्तीफा….!
भाजपा के ‘गुजरात मॉडल’ ने मप्र में पार्टी नेताओं खास कर राज्य मंत्रिमंडल के सदस्यों की नींद उड़ा रखी है। गुजरात में मंत्रिमंडल विस्तार से पहले मुख्यमंत्री को छोड़ कर सभी 16 मंत्रियों का इस्तीफा ले लिया गया। इसके बाद हुए शपथ गृहण में कई मंत्रियों की छुट्टी हो गई और कई नए चेहरों को स्थान मिल गया। इनमें कुछ वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं, जो पहले भी मंत्री रहे हैं। मंत्रिमंडल में खाली पदों को भर दिया गया। पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल विस्तार हो चुका है लेकिन मप्र में मोहन मंत्रिमंडल में फेरबदल टल रहा है। मंत्रिमंडल में 4 पद खाली हैं जबकि परफारमेंस के आधार पर कुछ मंत्रियों को हटाए जाने पर विचार चल रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के जिन विधायकों को वादा कर भाजपा में शामिल किया गया था, वे मंत्री बनने के इंतजार कर रहे हैं। गोपाल भार्गव जैसे कुछ वरिष्ठ विधायकों को विस्तार में एडजस्ट करने का भरोसा दिया गया है। मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक कई दौर की चर्चा हो चुकी है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव सभी प्रमुख नेताओं से बात कर चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। सवाल है कि क्या मप्र में भी गुजरात मॉडल की तर्ज पर मंत्रिमंडल के सदस्यों का इस्तीफा ले लिया जाएगा? हालांकि अब मंत्रिमंडल विस्तार बिहार चुनाव के बाद ही होने की संभावना है।
भाजपा के गले की फांस बन रही भावांतर योजना….!
सोयाबीन को लेकर सरकार की भावांतर योजना को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है ही, भाजपा के अंदर भी इसे लेकर विरोध के स्वर फूटने लगे हैं। इसका पता तब चला जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी किसान कांग्रेस के साथ केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बंगले पहुंच गए। इसे लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने पटवारी को घेरा और कांग्रेस नेताओं पर बिना अनुमति प्रदर्शन करने पर एफआईआर दर्ज हो गई। खंडेलवाल की टिप्पणी प्रदेश भाजपा द्वारा सोशल मीडिया के फेसबुक अकाउंट पर डाली गई तो वे ट्रोल हो गए। भाजपा के कई कार्यकर्ताओं ने लिखा कि आपको जीतू के शिवराज के बंगले जाने पर आपत्ति है लेकिन किसानों की चिंता नहीं है। उन्होंने लिखा कि आपको जीतू की बजाय किसानों की चिंता करना चाहिए, क्याेंकि किसानों के मुद्दे उठाकर कांग्रेस उनके बीच जगह बना रही है। सरकार के वरिष्ठ मंत्री करन सिंह वर्मा योजना का विरोध कर चुके हैं और आरएसएस से जुड़ा भारतीय किसान संघ भी भावांतर योजना के खिलाफ खुलकर मैदान में है। दूसरी तरफ किसानों का एक तबका कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री का अभिनंदन कर भावांतर योजना के लिए आभार व्यक्त कर रहा है। ऐसा तो नहीं कि भाजपा इस मसले पर चूक कर रही है? ऐसा न हो कि योजना भाजपा गले की फांस बन जाए।
टीम घोषित करने के साथ सामने आई यह चुनौती….
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए बिहार चुनाव के बीच अपनी टीम घोषित कर दी लेकिन इसके साथ उन पर पार्टी के अंदर उपजे विरोध को शांत करने की चुनौती भी आ गई। नए पदाधिकारियों की वर्चुअल मीटिंग में इसकी झलक साफ दिखाई पड़ी। पदाधिकारियों को हिदायत दी गई कि वे अपना स्वागत, अभिनंदन कराने से बचें। उन नेताओं के घर जाएं, जो पदाधिकारी न बन पाने के कारण नाराज हैं। पदाधिकारियों से कहा गया कि वे सबको साथ लेकर चलें। कार्यकारिणी की घोषणा के साथ लोधी, गुर्जर, कायस्थ, रघुवंशी और सिंधी सहित कई समाजों ने प्रतिनिधित्व न मिलने पर नाराजगी जताई है। शैलेंद्र शर्मा जैसे पार्टी के निष्ठावान नेताओं ने सोशल मीडिया के जरिए अनुशासन के दायरे में अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। आदिवासी और दलित वर्ग में असंतोष के स्वर इसलिए उभर रहे हैं क्योंकि उन्हें प्रतिनिधित्व देने के नाम पर सांसदों, विधायकों को जगह दे दी गई। कुछ वरिष्ठ नेताओं में जूनियर नेताओं को बड़ा पद देने के कारण असंतोष है। अधिकतर वरिष्ठ नेताओं को जगह ही नहीं मिली। खंडेलवाल सुलझे राजनेता हैं, प्रारंभ से ही सबको साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए टीम में उनके खुद के समर्थक ज्यादा नहीं हैं। उम्मीद है कि वे जल्दी असंतोष पर काबू पाकर सबको काम पर लगा लेंगे।
कांग्रेस में सिर-फुटौव्वल, वरिष्ठ ही उठा रहे सवाल….
प्रदेश कांग्रेस में चल रहीं अंदरूनी खींचतान की खबरों से पार्टी का आलाकमान चिंतित है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार अपने-अपने स्तर पर अगले चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। लगातार दौरे कर रहे हैं लेकिन दोनों प्रमुख नेता समन्वय बनाकर काम करते नहीं दिखाई पड़ते। दोनों के अंदर ही आपसी खींचतान के संकेत कई बार मिल जाते हैं। दूसरी ओर पार्टी के वरिष्ठ नेता कांग्रेस नेताओं की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अनुशासन समिति के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने ही कह दिया कि पार्टी के अंदर समन्वय की कमी है। उन्होंने कहा कि पार्टी के कई नेता आपसी तालमेल और संवाद की जगह व्यक्तिगत एजेंडे पर काम कर रहे हैं। इससे संगठन की एकजुटता प्रभावित हो रही है। उन्होंने दो टूक कहा कि यदि संगठन को मजबूत करना है तो नेताओं में अनुशासन और समन्वय लाना होगा। विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने पार्टी की कार्यशैली पर अलग ढंग से सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है और जहां चार बर्तन होते हैं तो खटकते ही हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी इस समय संघर्ष के दौर से गुजर रही है, इसलिए पार्टी में छोटी-छोटी बातों पर मनमुटाव बंद होना चाहिए। उनका कहना था कि इसकी बजाय पार्टी के अंदर खुल कर हर मुद्दे पर बात होना चाहिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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