मामा शिवराज को मिलने वाली है और बड़ी जिम्मेदारी
उमेश सिंघार ने बढ़ाया बीजेपी का टेंशन
दिनेश निगम ‘त्यागी’
प्रदेश में लगभग साढ़े 16 साल तक मुख्यमंत्री रहे केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के इर्द-गिर्द भाजपा की गतिविधियां केंद्रित होती दिख रही हैें। उनके साथ बड़े और प्रमुख नेताओं की मेल-मुलाकातें बढ़ीं हैं। अटकलें हैं कि इसका संकेत यह तो नहीं कि शिवराज को कोई और बड़ी जवाबदारी मिलने जा रही है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ 45 मिनट की उनकी मुलाकात पहले ही हो चुकी है। हाल ही में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने उनसे मुलाकात की थी। अब दिल्ली में शिवराज के बंगले जाकर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने लगातार दो बार भेंट की। एक मुलाकात जेपी नड्डा के साथ भी हुई। पूर्व मंत्री कमल पटेल के साथ शिवराज का छत्तीस का आंकड़ा रहा है लेकिन दोनों एक-दूसरे को हाथ से खाना खिलाते नजर आ गए। इन मुलाकातों को दो तरह से देखा जा रहा है। पहला यह कि शिवराज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के दावेदार हैं। जेपी नड्डा के स्थान पर इस पद के लिए कभी भी चुनाव हो सकता है। समर्थक शिवराज की मुलाकातों को इससे जोड़ कर देख रहे हैं। दूसरी वजह राजनीतिक नियुक्तियों को माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसके लिए शिवराज की राय ली जा रही है। वे समर्थकों को एडजस्ट कराना चाह रहे हैं। वजह जो भी हो लेकिन एक बार फिर शिवराज चर्चा में आ गए हैं।
विंध्य-चंबल में बढ़ रही भाजपा नेताओं में गुटबाजी….
कांग्रेस की एक बीमारी गुटबाजी इस समय भाजपा के अंदर सिर चढ़ कर बोलने लगी है। प्रदेश के दो अंचलों विंध्य और चंबल-ग्वालियर अंचल में यह चरम पर है। हद तब हो गई जब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव विंध्य में रीवा जिले के दौरे पर गए लेकिन मंच पर यहां के सबसे बड़े दिग्गज उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला नदारद थे। कार्यक्रम के कर्ता-धर्ता थे कांग्रेस सेे आए सिद्धार्थ तिवारी। वे भाजपा से विधायक हैं। उन्होंने बैनर-पोस्टर तक में राजेंद्र शुक्ला को जगह नहीं दी थी। कहा जा रहा है कि उन्हें कार्यक्रम में बुलाया तक नहीं गया था। मुख्यमंत्री डॉ यादव को पार्टी नेताओं के बीच मतभेदों का अंदाजा लग गया। लिहाजा बिना किसी कार्यक्रम के वे भाजपा के जिला कार्यालय पहुंचे और सभी नेताओं की बैठक ली। इसमें राजेंद्र शुक्ला मौजूद रहे। मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताते हुए सभी को मिल कर काम करने की हिदायत दी। इससे पहले सांसद जनार्दन मिश्रा और सिद्धार्थ के बीच विवाद भी चर्चा में रहा था। यही स्थिति चंबल-ग्वालियर अंचल की है। यहां के पार्टी नेता केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के गुटों में बंट गए हैं। इस खींचतान का नतीजा है कि संगठन और सरकार की नौ सदस्यीय सबसे ताकतवर टोली में चंबल-ग्वालियर अंचल का एक भी नेता शामिल नहीं है। यह स्थिति भाजपा के लिए शुभ नहीं है।
गौहत्या पर प्रतिबंध तो गौमांस जीएसटी मुक्त क्यों….?
इससे कोई इंकार नहीं कि मप्र देश के उन चुनिंदा राज्यों में शुमार है जहां भाजपा की सरकार ने गौहत्या पर प्रतिबंध लगा रखा है। ऐसा करने वाली सरकार गौमांस की बिक्री पर जीरो फीसदी जीएसटी का नोटिफिकेशन जारी कर देगी, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के हाथ जैसे ही यह नोटिफिकेशन लगा, उन्होंने भाजपा सरकार पर हमला बोल दिया और प्रदेशव्यापी आंदोलन की घोषणा कर डाली। इसके बाद भाजपा और सरकार बचाव में उतरी। तब तक विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठन भी विरोध में उतर चुके थे। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कांग्रेेस पर जबरदस्त पलटवार किया। उन्होंने कहा कि हमारी मान्यता है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। हम गौ-हत्या की सोच भी नहीं सकते। कांग्रेसियों का गौमाता से कोई लेना देना नहीं। वह तो गौमाता के हत्यारों की रिश्तेदार है। उसने ही दशकों पहले करपात्री महाराज और साधु संतों पर गोलियों चलवाई थीं। कांग्रेस ने गाय-बछड़े का चुनाव चिन्ह बदलकर पंजा कर दिया था। कांग्रेस के इस पाप को जनता कभी माफ नहीं करेगी। विधायक रामेश्वर शर्मा सहित भाजपा के अन्य कई नेताओं ने भी कांग्रेस पर जम कर हमला बोला है लेकिन किसी ने इस बात का जवाब नहीं दिया कि आखिर गौमांस की बिक्री को जीएसटी मुक्त क्यों किया गया? इस गलती के लिए कौन जवाबदार है और उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई?
कांग्रेस-भाजपा ने बढ़ाया आदिवासी क्षेत्रों में फोकस….
प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र राजनीतिक अखाड़े में तब्दील होते दिख रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की सक्रियता से भाजपा भी सतर्क हुई है। सिंघार आदिवासी बाहुल्य सीटों पर लगातार दौरे कर रहे हैं। वे सिंगरौली, सीधी, डिंडोरी, अनूपपुर, मंडला, आलीराजपुर, धार, बैतूल और उमरिया आदि जिलों का दौरा कर चुके हैं। उनके दौरे को कांग्रेस की आगामी चुनावी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, राहुल गांधी सीधे आदिवासी और दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिसके तहत बड़े स्तर पर यात्राएं और सभाएं की जा रही हैं। सिंघार ने ‘आदिवासी हिंदू नहीं’ का नारा देकर भी आदिवासियों को लामबंद करने की कोशिश की है। इसे देख कर भाजपा भी चौकन्नी हुई है। जवाब में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का जबलपुर में आदिवासियों के बीच बड़ा कार्यक्रम हुआ है। वे आदिवासी जिलों का दौरा कर रहे हैं। कांग्रेस-भाजपा के बीच यह लड़ाई आदिवासी वोटों के लिए ही है। प्रदेश में 47 सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। अन्य 30 सीटों पर यह वर्ग निर्णायक भूमिका में है। मध्यप्रदेश में 47 आदिवासी रिजर्व सीटों में से 22 सीट कांग्रेस के पास है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 30 सीटें मिली थीं। कांग्रेस की कोशिश 2018 की स्थिति बहाल करने की है जबकि भाजपा कांग्रेस के पास 22 भी नहीं रहने देना चाहती।
संपत्ति विवाद में उलझे भाजपा से जुड़े राज परिवार….
भाजपा से जुड़े उन राज परिवारों में भी संपत्ति को लेकर विवाद सुर्खियों में है, जिनके पास अकूत धन-दौलत है। ग्वालियर के सिंधिया राजवंश और देवास के राज परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद की खास चर्चा हैं। सिंधिया राजवंश में 40 हजार करोड़ की संपत्ति को लेकर विवाद दो दशक से भी ज्यादा समय से चला आ रहा है। तत्कालीन महाराज माधव राव सिंधिया और उनकी बहन वसुंधरा राजे सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया और उषा राजे सिंधिया के बीच पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद हुआ था। तीनों बहनों ने पैतृक संपत्ति पर दावा किया था। माधवराव सिंधिया की मृत्यु के बाद 2010 में तीनों ने संपत्ति में अपना हक मांगते हुए भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ जिला कोर्ट में परिवाद दायर किया था। 2017 में यह ग्वालियर हाईकोर्ट में पहुंचा। फिलहाल हाईकोर्ट की एकल पीठ ने आदेश दिया है कि सिंधिया राजवंश के चारों लोग मिलकर बातचीत से सहमति बनाएं और 90 दिन के अंदर कोर्ट में सहमति पत्र प्रस्तुत करें। इसी प्रकार देवास राजपरिवार के सदस्यों के बीच 12 अरब से ज्यादा संपत्ति का विवाद हाईकोर्ट में है। महाराष्ट्र निवासी शैलजाराजे पंवार ने जिला न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर राजघराने की संपत्ति में हिस्सेदारी मांगी है। उन्होंने कहा है कि वे कृष्णाजी राव पंवार की पुत्री हैं। उन्हें उनकी संपत्तियों में हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



