सुनने की परेशानी, जिम्मेदारियां और बढ़ती उम्र के बावजूद 2 बेटियों की मां ने क्रैक किया UPSC

जिम्मेदारियों के बोझ तले जब जीवन की रफ्तार धीमी पड़ गई है तब निसा ने अपने सपनों को पंख देने का फैसला किया। 2024 में 1000वीं रैंक हासिल करके दिखा दिया कि अगर हौसला हो तो उम्र, बाधाएं और हालात सबसे पार पाया जा सकता है।
दो बेटियों की मां, जॉब करने वाली एक कामकाजी महिला और सुनने की परेशानी से जूझती निसा ने देश में सबसे कठिन यूपीएससी सिविल सर्विस परीक्षा देने का फैसला किया। यहां जानिए उनकी सक्सेस स्टोरी
जहां एक तरफ लोग 30 साल की उम्र के बाद सिविल सेवा की तैयारी छोड़ने का सोचने लगते हैं, वहीं निसा ने 35 साल की उम्र में इसकी शुरुआत करने का फैसला किया। वह कहती हैं, ‘मैं हमेशा से कुछ करना चाहती थी, लेकिन मैंने 35 की उम्र में इसे गंभीरता से लिया।’
UPSC की तैयारी के साथ 2 बेटियों की परवरिश
निसा की जिंदगी सिर्फ किताबों में नहीं थी क्योंकि वह एक मां भी थीं। उनकी दो बेटियां नंदना (11 साल) और थानवी (7 साल) उनकी दिनचर्या का हिस्सा थीं। उनकी पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों की देखभाल और घर की जिम्मेदारी भी थी। पति अरुण एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। साथ ही उनके रिटायर माता-पिता ने भी निसा का भरपूर साथ दिया।
सुनने की परेशानी, लेकिन सपनों की बुलंद आवाज
निसा एक आम यूपीएससी कैडिडेट नहीं थीं। उन्हें सुनने में कठिनाई होती है, जो किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में एक गंभीर चुनौती हो सकती है। लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उन्होंने कोट्टायम के सब-कलेक्टर रंजीत से प्रेरणा ली जोकि खुद भी इसी चुनौती से जूझते हुए सफल हुए थे।
हर असफलता ने सिखाया कुछ नया
निसा का ये सफर आसान नहीं था। वह UPSC के 6 अटेम्प में नाकाम रहीं लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। हर बार, उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा और खुद को बेहतर बनाया। निसा कहती हैं, ‘मैंने कभी भी अपने किसी अटेम्प्ट को बेकार नहीं माना। हर कोशिश ने मुझे कुछ नया सिखाया।’
कोचिंग, किताबें और मोटिवेशन
निसा ने तिरुवनंतपुरम के एक कोचिंग सेंटर से गाइडेंस लिया। उनका असली हौसला बनी सफल हुए यूपीएससी कैडिडेट्स की प्रेरणादायक कहानियां और मोटिवेशनल वीडियो। उन्होंने पढ़ाई का एक अलग तरीका अपनाया, और वो तरीका उनके लिए कारगर भी रहा।