Gender Neutral : आया जमाना ‘जेंडर न्यूट्रल’ का ?

डॉ. वंदना अग्रवाल
रांची : आपने बहुत सारे शब्द सुने होंगे जैसे जेंडर इक्वालिटी (लिंग समानता), वीमेन इंपावर्मेंट (महिला सशक्तिकरण), फ़ेमिनिज्म (नारीवाद) और मेल डिस्क्रिमिनेशन (पुरुष लिंग भेदभाव) आदि। क्या आप जेंडर न्यूट्रल का मतलब समझते हैं? इसका मतलब है कि सामने वाले को एक आदमी या औरत के रूप में नहीं बल्कि एक इंसान के रूप देखना। जेंडर न्यूट्रल में आप एक इंसान को उसकी क़ाबिलियत, मेरिट और व्यवहार के अनुसार परखते हैं, लड़का या लड़की यानी लिंग के आधार पर नहीं।
इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म
लड़का-लड़की में भेदभाव करते समय समाज यह भूल जाता है कि सामने वाला पहले एक इंसान है। इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म भी है फिर चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम या कुछ और। इंसानियत ही सबसे ऊपर है ।
क़ाबिलियत के अनुसार काम करना चाहिए
लड़का या लड़की होना अपने हाथ में नहीं होता। इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है, प्रकृति ने हमें जो रूप दिया है, वह कुछ सोच कर ही दिया है। इसलिए प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। कुछ चीज़ें आदमी बेहतर कर सकता और कुछ औरत। अब इसमें कोई कंपीटिशन (प्रतियोगिता) नहीं होनी चाहिए की कौन बेहतर है? सभी को क़ाबिलियत के अनुसार काम करना चाहिए।
अब भी बहुत कुछ बदलना शेष है
पहले कहा जाता था कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है। औरतों के साथ अत्याचार भी होता था। लेकिन, 1980 के बाद जमाना तेजी से बदला। लोग अपनी लड़कियों को पढ़ने बाहर भेजने लगे और लड़कियां भी घर से बाहर निकल कर काम करने लगी। इससे लिंगभेद कम हुआ। उनका आत्मसम्मान बढ़ा। पर अब भी बहुत कुछ बदलना शेष है।
अपनी सोच बदलिए, जेंडर नहीं
आज भी अधिकतर पुरुष नहीं समझते हैं कि स्त्रियां भी समान अधिकार और सम्मान की हक़दार हैं। यह स्थिति तब है, जब स्कूल, कॉलेज और गवर्नमेंट सेक्टर या प्राइवेट सेक्टर में भी स्त्रियों को समान अधिकार मिल रहा है। फिर भी लड़ाई ख़त्म नहीं हुई है। लोगों का नजरिया बदलना चाहिए। किसी को भी क़ाबिलियत, मेरिट, बिहेवियर, चरित्र के आधार पर ही तौलना चाहिए। लिंग के आधार पर नहीं। इसलिए अपनी सोच बदलिए, जेंडर (लिंग) पर नहीं जाइए।
(लेखिका रांची बेस्ड डेंटिस्ट और मनोवैज्ञानिक हैं। इनसे drvandanaagarwal29@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)