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Dhanbad: बांग्ला भाषा पर बाजारवाद का हमला, अब तो अस्तित्व पर है संकट

'शिल्पे अनन्या' पत्रिका के विमोचन कार्यक्रम में बुद्विजीवियों की चिंता

निरसा से अमित कुमार की रिपोर्ट
निरसा: त्रैमासिक बांग्ला पत्रिका ‘शिल्पे अनन्या’के 72 वें अंक का विमोचन पंचेत स्थित बी.एड. कॉलेज में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पत्रिका के संपादक प्रो. (डॉ.) डी.के. सेन ने की। मुख्य वक्ता के रूप में रांची विश्वविद्यालय के प्रो. गौतम मुखर्जी तथा बांकुड़ा रामानंद कॉलेज के प्रो. (डॉ.) सिद्धार्थ उपस्थित रहे।
संपादक प्रो. दीपक कुमार सेन ने कहा कि 1990 के वैश्वीकरण के बाद सभी भाषाओं को बाज़ार की चुनौती झेलनी पड़ी है। बांग्ला जैसी समृद्ध भाषा भी संकट का सामना कर रही है।
प्रो. गौतम मुखर्जी ने कहा कि बंकिमचंद्र, रवींद्रनाथ ठाकुर, शरतचंद्र चटर्जी, काजी नजरुल इस्लाम से लेकर बनफूल तक सभी ने बांग्ला भाषा को ऊँचाई दी है, किंतु आज बाज़ारवाद के दौर में इसके अस्तित्व पर संकट है।
प्रो. सिद्धार्थ ने ‘शिल्पे अनन्या’ पत्रिका के ऐतिहासिक योगदान की सराहना करते हुए कहा कि यह पत्रिका झारखंड, बंगाल, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के बांग्लाभाषियों को जोड़कर भाषा और साहित्य को समृद्ध कर रही है।
भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. काशीनाथ चटर्जी ने कहा कि अंग्रेज़ी आज मध्यवर्ग की भाषा बन चुकी है, परंतु मातृभाषा सदैव मेहनतकश वर्ग की भाषा रही है और वही इसे बचा सकती है। दामोदर वेली टीचर ट्रेनिंग बीएड कॉलेज के अध्यक्ष देवदास महतो ने बुद्धिजीवी वर्ग का स्वागत करते हुए कहा इस तरह का कार्यक्रम हमारे लिए गर्व की बात है।
इस अवसर पर उज्ज्वल कुमार दत्ता, प्रो. वरुण सरकार, प्रो. सुकुमार मोहंती, रीना भौमिक, तनुश्री गोराई, शर्मिष्ठा सेनगुप्ता, विकास कुमार ठाकुर तथा जामताड़ा ज्ञान विज्ञान समिति के सचिव दुर्गादास भंडारी ने भी विचार रखे। कार्यक्रम को सफल बनाने में विकाश सेन, विश्वजीत गुप्ता, डॉ ध्रुव बनर्जी, बीएड कॉलेज के सचिव निवाश चंद्र महतो, वैली पब्लिक स्कूल के सचिव बासुदेव महतो आदि का प्रयास रहा। कार्यक्रम का संचालन शुभ्रा कोनार ने किया।

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