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चिराग पासवान और प्रशांत किशोर में हो रही ‘अंडर टेबल डील’, लेकिन ‘छोटे पासवान’ की राह नहीं है आसान

पटना: वैसे तो राजनीति संभावनाओं का खेल है। यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है। एक संभावना यह बन रही है कि प्रशांत किशोर और चिराग पासवान एक प्लेटफॉर्म पर आकर आगामी बिहार विधान सभा चुनाव 2025 में एनडीए और महागठबंधन को चुनौती दें। दूसरी संभावना यह है कि पीके और चिराग के साथ कांग्रेस भी एक प्लेटफॉर्म पर आ जाए। पर इन दिनों लीक से हटकर राजनीति की जो नई धारा बहाई जा रही है वह सहज रूप से आकर लेते दिखती नहीं है। इसकी कई वजहें भी हैं।

केंद्रीय मंत्री पद छोड़ना

अगर यह मान लें कि पीके और चिराग पासवान एक प्लेटफॉर्म पर आ जायेंगे तो सबसे पहले चिराग पासवान को मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा। और गर इस्तीफा दे दिया तो पार्टी को बचाना मुश्किल होगा। इस्तीफा देने के बाद यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि चिराग पासवान के जीजा को छोड़ इनके अन्य सांसद ही इनके साथ नहीं रहेंगे। ठीक वैसे ही जैसे पशुपति पारस ने चिराग पासवान के अलावा अन्य लोजपा सांसदों को अपने साथ मिलाकर एक नई पार्टी बना ली थी।

सीएम की कुर्सी मिलेगी भी नहीं

एक संभावना यह बताई जा रही है कि चिराग पासवान बिहार का नेतृत्व करना चाहते हैं। यह एनडीए और महागठबंधन के साथ संभव तो नहीं हो सकता। लेकिन क्या यह पीके या कांग्रेस के साथ जाने पर संभव हैं? राजनीतिक गलियारों की चर्चा को माने तो प्रशांत किशोर क्यों मुख्यमंत्री पद चिराग पासवान को देंगे। इतना परिश्रम वह भी वर्षों से किसी दूसरे किए थोड़े न करेंगे।

राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस भी चिराग पासवान के लिए सीएम पद का परित्याग नहीं करने जा रही है। ऐसे में चिराग पासवान एनडीए का साथ छोड़ कर पीके साथ क्यों जाएं?

वोट प्रतिशत

एक चर्चा यह है कि पीके और चिराग पासवान 16 प्रतिशत की राजनीति करना चाहते हैं। 16 प्रतिशत का मतलब चिराग पासवान का छह प्रतिशत और प्रशांत किशोर को उप चुनाव में मिले 10 प्रतिशत वोट। लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह कहा जा रहा है कि चिराग पासवान जिस छह प्रतिशत वोट की राजनीति की बात करते हैं वह अकेले का नहीं है। इसमें एनडीए का वोट भी शामिल है। रहा पीके के 10 प्रतिशत वोट की बात तो वह मात्र चार सीटों का आंकलन है। अभी तक पीके संपूर्णता के साथ विधान सभा चुनाव नहीं लड़े हैं।

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