BJP वाले संतोष, उम्मीद जगा कर चले गए, अब क्या होगा?
सिंगार बता दें - नामांकन फार्म में धर्म की जगह क्या लिखा है?
दिनेश निगम ‘त्यागी’
लीजिए, दावेदारों को निराश कर के चले गए संतोष….
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष के भोपाल में कदम रखते ही हल्ला हो गया था कि उन्होंने संगठन के साथ सरकार में राजीनीतिक नियुक्तियों को लेकर चर्चा की है। यह भी कहा गया कि संतोष ने प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी और मंत्रिमंडल विस्तार पर भी बातचीत की है। ऐसा प्रचारित किया गया कि वे सूची पर मुहर लगा कर ही जाएंगे। पर नतीजा ‘ढाक के तीन पात’ जैसा, कुछ नहीं हुआ। संतोष ने जैसे ही भोपाल से उड़ान भरी, निगम-मंडलों सहित हर तरह की नियुक्तियों की चर्चा पर विराम लग गया। सभी दावेदार नेता नियुक्तियों का इंतजार करते रह गए। ऐसा भी नहीं है कि हफ्ते-दो हफ्ते में ये नियुक्तियां होने वाली हैं, अनंत चतुर्दशी के साथ गणेश उत्सव समाप्त हो गया और अब पितृ पक्ष शुरू गए। इस दौरान शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। साफ है कि फिलहाल मामला लटक गया। भाजपा के एक पदाधिकारी का कहना था कि नियुक्तियों को लेकर अटकलें जरूर चल रही थीं लेकिन राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के दौरे के दौरान इस तरह निगम-मंडलों में नियुक्तियों पर चर्चा किए जाने की परंपरा नहीं है। इस बारे में निर्णय प्रदेश नेतृत्व को लेना है। बाद में सूची को हरी झंडी दिखाने की औपचारिकता नेतृत्व करता है। इसलिए ऐसी चर्चा सिर्फ अटकलें और अफवाह होती हैं, इसके अलावा कुछ नहीं।
माननीय को मिल सकेगा इस अपराध का भी दंड….!
एक कहावत है ‘करेला और नीम चढ़ा’। यह प्रदेश के एक ताकतवर नेता संजय पाठक पर सटीक बैठती दिख रही है। पहले तो उनके अंदर पैसे की ठसक है, दूसरा, वे माननीय अर्थात विधायक। ऐसा दबंग ही ऐसी जुर्रत कर सकता है कि अपने केस को प्रभावित करने के लिए सीधे हाईकोर्ट जज को फोन लगा दे। उन्होंने ऐसा ही किया। नतीजा यह हुआ कि जज ने फाइल में टीप दर्ज कर केस को सुनने से इंकार किर दिया और फाइल चीफ जस्टिस के पास भेज कर आग्रह किया कि इसकी सुनवाई किसी अन्य बेंच से करा लें। मामला अवैध खनन से जुड़ी वसूली का है। पाठक के परिजनों के नाम की कंपनियों पर 443 करोड़ रुपए की वसूली निकाली गई है। इसके खिलाफ पाठक हाईकोर्ट चले गए और केस पर चर्चा के लिए जस्टिस को फोन लगा दिया। जज ने केस सुनने से इंकार किर दिया। पर सवाल है कि क्या यह अपराध इतना साधारण है? क्या इस मामले में पाठक के खिलाफ न्यायालय को प्रभावित करने का प्रकरण दर्ज नहीं होना चाहिए? प्रदेश का यह ऐसा पहला मामला है जिसमें जज से बात की गई और उन्होंने केस सुनने से इंकार कर दिया। यह मामला दो-चार दिन की सुर्खियां बना और शांत हो गया क्योंकि पाठक के खिलाफ न तो एफआईआर दर्ज कराई गई और न ही किसी तरह की अन्य कार्रवाई की गई। क्या इससे न्यायालय की साख बरकरार रह पाएगी?
‘सीएम हेल्पलाइन’ से ऐसे निबटती है छतरपुर पुलिस….!
सीएम हेल्पलाइन से लोगों का भरोसा तोड़ने के लिए अफसर और पुलिस कितनी मेहनत करती है, इसका उदाहरण है छतरपुर पुलिस। मामला पन्ना रोड स्थित छत्रसाल नगर का है। यहां मुख्य मार्ग पर बड़ी तादाद में ट्रक खड़े होने लगे हैं। ट्रकों का स्टॉफ छत्रसाल नगर में रहने वाले लोगों के घरों में ताक-झांक करता है। यहां सन्मति विद्या मंदिर स्कूल भी है, जहां आने-जाने वाले छात्रों खास कर छात्राओं को परेशानी होती है। बीएड कॉलेज के एक लेक्चरर महेंद्र शर्मा ने चालकों को वहां ट्रक खड़ा करने से मना किया तो वे लड़ने पर आमादा होकर गाली-गलौज करने लगे। बोले कि हम रोड टैक्स देते हैं, कहीं भी ट्रक खड़े कर सकते हैं। शर्मा ने शिकायत सिविल लाइन थाने में की। कोई सुनवाई नहीं हुई तो सीएम हेल्पलाइन में शिकायत भेजी। ट्रैफिक पुलिस के टीआई को भी बताया। इसी दौरान चोरों ने उनके घर में खिड़की की एक ग्रिल काट कर घुसने की कोशिश की। उनकी नींद खुल गई, इसलिए चोर भाग खड़े हुए, वर्ना कोई बड़ी अनहोनी हो सकती थी। इसकी शिकायत भी थाने में की गई लेकिन पुलिस ने यह कह कर एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया कि कुछ चोरी नहीं गया इसलिए किस बात की एफआईआर? वे दबाव बनाने लगे की सीएम हेल्पलाइन में की गई शिकायत को खत्म कर दीजिए। शर्मा ने मना किया तो पुलिस ने कहा कि अब ट्रक यहां ही खड़े होंगे, कर लो जो कर सकते हो? ऐसे में लोगों का ‘सीएम हेल्पलाइन’ से भरोसा नहीं उठेगा तो क्या होगा?
‘खाद’ की बलि चढ़ेंगे प्रदेश के एक दर्जन कलेक्टर….!
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की एक चेतावनी ने जिला कलेक्टरों की नींद उड़ा दी है। उन्होंने दो टूक कहा कि जिले में खाद वितरण को लेकर कोई समस्या आती है, धरना-प्रदर्शन होते हैं तो इसके लिए संबंधित जिले के कलेक्टर को जवाबदार मान कर कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री की इस चेतावनी के बाद जिलों में कलेक्टर्स सारे काम छोड़ कर खाद की व्यवस्था में जुट गए हैं। दूसरी तरफ ऐसे कलेक्टर्स की सूची भी बनाई जाने लगी है, जो खाद समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं। रीवा और सीधी की घटनाओं पर डॉ यादव ने खुद नाराजगी जताई थी। खबर है कि लगभग एक दर्जन कलेक्टर ऐसे हैं जो किसानों के लिए खाद वितरण की व्यवस्था नहीं संभाल पाए। भिंड में अलग ही मजेदार वाकया हुआ, जहां खाद के लिए लाइन में खड़े किसानों पर कुछ लोगों ने पथराव कर दिया। उंगली विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह के समर्थकों पर उठ रही है क्योंकि हाल ही में उनका कलेक्टर के साथ विवाद हुआ था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि कलेक्टर को खाद की अव्यवस्था के लिए जवाबदार मान लिया जाए। मुख्यमंत्री ने कुछ कलेक्टरों की तारीफ भी की। इनमें शाजापुर, जबलपुर, दमोह और धार जिले के कलेक्टर शामिल हैं। इन्होंने नवाचार कर खाद की व्यवस्था में कोई समस्या नहीं आने दी। बहरहाल, खबर हे कि खाद को लेकर एक दर्जन कलेक्टर्स की बलि चढ़ सकती है।
उमंग जी, क्या लिखते हैं अपने धर्म के कॉलम में….?
– विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के एक बयान ने राजनीति में उबाल ला दिया है। उन्होंने नारा दिया है कि ‘हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं।’ सिंघार के इस बयान की मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव सहित केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा के नेताओं ने आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस हमेशा हिंदू समाज को बांटने और कमजोर करने का काम करती रही है। इसके विपरीत सिंघार ने आरोप लगाया कि भाजपा और संघ हमको हिंदू बनाना चाहते हैं, जबकि आदिवासी समाज अपनी रीति, नीति, संस्कृति की बात करें तो भाजपा को बुरा लगता है। इतिहास गवाह है कि इस देश के मूल निवासी आदिवासी रहे हैं। सिंघार का कहना है कि संघ हिंदुओं की एकजुटता के लिए काम करता है। यदि आदिवासी भी हिंदू हैं तो आज तक संघ का एक भी सर संघचालक आदिवासी क्यों नहीं बना? उन्होंने कहा कि संविधान में परिभाषित किया गया है कि जो आदिकाल से वास कर रहे हैं वह आदिवासी हैं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने पहली बार भाजपा को अपने एजेंडे पर बात करने के लिए मजबूर कर दिया है। सिंघार चाहते हैं कि इस मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा बहस हो। उन्हें उम्मीद है कि इससे आदिवासी समाज कांग्रेस के झंडे के नीचे आएगा। बड़ा सवाल यह है कि यदि आदिवासी हिंदू नहीं तो सिंघार नामांकन फार्म में धर्म के कॉलम के सामने क्या लिखते हैं? इसका खुलासा भी कर देना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



