Bhopal : Success Story: महुआ बीना, बाल विवाह का दंश झेला, फिर अधिकारी बनकर किया नाम रोशन
भोपाल: एक आदिवासी परिवार में जन्मी साविता प्रधान अब परिचय की मोहताज नहीं हैं। लेकिन, एक समय था कि वह संघर्ष के सागर में गोते लगा रही थी। सावित्री जब सुबह सोकर उठती थी, तो उनका पहला काम महुआ बीनना और बीड़ी के पत्तों की तुड़ाई करना रहता था। परिवार के लोग भी इसी काम में लगे रहते थे। जैसे जैसे साविता बड़ी हुई तो पढ़ाई की ओर ललक बढ़ी। इसके बाद माता-पिता ने भी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी। साविता ने गांव में रहकर 10वीं की परीक्षा पास कर ली। यह सफलता हासिल करने वाली सावित्री अपने गांव की पहली लड़की बन गई। इसके बाद जल्द ही उसके हाथ पीले हो गए। फिर यहां से शुरू हो गया संघर्ष का नया दौर। दरअसल, साविता बचपन से ही पढ़ने में होशियार थीं पर उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिलती थी। इसी से अपनी पढ़ाई पूरी की। 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद गांव से 7 किमी दूर कॉलेज में एडमिशन हुआ। सविता ने साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई की थी। उनका सपना डॉक्टर बनने का था।
सविता की 16 साल की उम्र में हो गई शादी
सविता के माता-पिता पढ़े लिखे नहीं थे। लेकिन सविता की पढ़ाई पूरा करने के लिए उसे प्रेरित करते रहे। सविता जब 12वीं क्लास में थी, तभी एक अमीर परिवार से उन्हें शादी का रिश्ता आया। इस रिश्ते के आते ही माता-पितान मना नहीं कर सके और बेटी को शादी करने के लिए राजी कर लिया। इस तरह से 16 साल की उम्र में चट मंगनी पट ब्याज की तर्ज पर उनकी शादी हो गई। यहां से सविता के दिन अच्छे आने के बजाय बुरे दिन शुरू हो गए। सविता ने एक इंटरव्यू में खुद इस बात का जिक्र किया था। भोपाल में शानदार रिसेप्शन हुआ था। लेकिन सविता यहां बाल विवाह का दंश झेलने लगीं। उसके सास, ससुर ननद और पति ने प्रताड़ित किया। उन दिनों को याद करते ही सविता की आज भी आखों से आंसू बहने लगते हैं। इसके बाद उसको दो बेटे हुए। दुख भरे इस जीवन से छुटकारा पाने के लिए सविता ने एक बार आत्महत्या की भी कोशिश की थी। लेकिन फिर बाद में इस फैसले को हमेशा के लिए टाल दिया। आखिर में सविता ने अपना ससुराल छोड़ दिया।
सविता प्रधान ने पार्लर में काम करना शुरू किया
सविता प्रधान ने अपनी ससुराल से निकलने के बाद एक रिश्तेदार के यहां पार्लर में काम करने लगीं। इस दौरान उनका किताबों की ओर प्रेम फिर से बढ़ा और अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू कर दी। फिर सविता मध्य प्रदेश प्रशासनिक सेवा की तैयारियों में जुट गई। साल 2005 में पहले ही प्रयास में एमपीएससी पास कर लिया। प्री, मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू पास करने पर कुल 75000 रुपये स्काॉलरशिप मिली।
सविता ने एमपीएससी की परीक्षा दो बार दी थी। सविता की पहली पोस्टिंग मध्य प्रदेश के नीमच जिले में सीएमओ (मुख्य नगर पालिका अधिकारी) के पद पर हुई। इस दौरान उनका चार महीने का बच्चा था, जिसे लेकर सविता दफ्तर जाया करती थीं। सविता ने अपने पहले पति से तलाक लेकर दूसरी शादी की। आज वह खुशहाल जिंदगी जी रही हैं।
सविता का कहना है कि उसके सास, ससुर ननद और पति ने प्रताड़ित किया। उन दिनों को याद करते ही सविता की आज भी आखों से आंसू बहने लगते हैं। इसके बाद उसको दो बेटे हुए। दुख भरे इस जीवन से छुटकारा पाने के लिए सविता ने एक बार आत्महत्या की भी कोशिश की थी। लेकिन फिर बाद में इस फैसले को हमेशा के लिए टाल दिया। आखिर में सविता ने अपना ससुराल छोड़ दिया।
सविता प्रधान ने पार्लर में काम करना शुरू किया
सविता प्रधान ने अपनी ससुराल से निकलने के बाद एक रिश्तेदार के यहां पार्लर में काम करने लगीं। इस दौरान उनका किताबों की ओर प्रेम फिर से बढ़ा और अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू कर दी। फिर सविता मध्य प्रदेश प्रशासनिक सेवा की तैयारियों में जुट गई। साल 2005 में पहले ही प्रयास में एमपीएससी पास कर लिया। प्री, मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू पास करने पर कुल 75000 रुपये स्काॉलरशिप मिली।
सविता ने एमपीएससी की परीक्षा दो बार दी थी। सविता की पहली पोस्टिंग मध्य प्रदेश के नीमच जिले में सीएमओ (मुख्य नगर पालिका अधिकारी) के पद पर हुई। इस दौरान उनका चार महीने का बच्चा था, जिसे लेकर सविता दफ्तर जाया करती थीं। सविता ने अपने पहले पति से तलाक लेकर दूसरी शादी की। आज वो खुशहाल जिंदगी जी रही हैं।