किस वजह से अभिशप्त है राजस्थान का यह गांव, 70% महिलाएं जवानी में हो जाती हैं विधवा

राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित बुढ़पुरा गांव के आसपास की खदानों में पत्थरों की कटाई के दौरान उड़ने वाली धूल में सिलिका नामक तत्व होता है. यह धूल मजदूरों के फेफड़ों में जाकर उन्हें गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाती है, जिससे सिलिकोसिस बीमारी हो जाती है. शुरुआत में खांसी और मुंह से खून आना आम होता है लेकिन समय पर इलाज न मिलने पर जान भी जा सकती है.
विधवाएं भी बनती हैं मजदूर
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जब घर का कमाने वाला मर जाता है, तो मजबूरी में उसकी पत्नी को भी खदानों में काम करना पड़ता है. गांव की अधिकतर महिलाएं सुबह से शाम तक पत्थर तोड़ती हैं. उन्हें पता है कि यही काम उनके पति की जान ले गया, लेकिन उनके पास कोई और चारा नहीं है. खदानों में काम करने पर रोज की मजदूरी सिर्फ 300-400 रुपये मिलती है, लेकिन यही उनके जीवन का सहारा है.
सिलिकोसिस की शिकार होती महिलाएं
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एक काल्पनिक नाम गीता देवी की कहानी इस दर्द को दर्शाती है. उनके पति की मौत सिलिकोसिस से हो गई थी. लेकिन परिवार चलाने के लिए गीता देवी को उसी खदान में काम करना पड़ा. अब वे खुद भी सिलिकोसिस की मरीज बन चुकी हैं. यह बीमारी जब एक बार लगती है, तो मरीज अधिकतम पांच साल ही जी सकता है. इसका इलाज संभव नहीं, सिर्फ रोकथाम ही उपाय है.
बच्चों का भी उजड़ता बचपन
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महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी काम में जुट जाते हैं. नतीजा ये होता है कि कम उम्र में ही बच्चों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. डॉक्टरों के अनुसार, जो मरीज उनके पास आते हैं उनमें से 50% सिलिकोसिस से ग्रसित होते हैं. जब तक इलाज शुरू होता है, तब तक बीमारी बहुत बढ़ चुकी होती है.
डॉक्टरों की चेतावनी
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सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के अनुसार, हर दिन 50-60 मरीज सांस की बीमारी लेकर आते हैं, जिनमें से आधे सिलिकोसिस के होते हैं. एक 45 वर्षीय मरीज का उदाहरण देते हुए डॉक्टर बताते हैं कि जब वह अस्पताल पहुंचा तो उसके फेफड़े पूरी तरह खराब हो चुके थे.
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आज गांव में 35 वर्ष से ऊपर की 70% महिलाएं विधवा हैं. यहां एक कड़वी सच्चाई ये कही जाती है कि इस गांव के मर्द कभी बूढ़े नहीं होते. क्योंकि वे जवानी में ही मौत के शिकार हो जाते हैं.