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MP BJP : बड़े काम के हैं अपने खंडेलवाल जी !

कर्मचारी हितैषी, सुख-दुख के साथी, सच या झूठ?

* दिनेश निगम ‘त्यागी’
0 मुख्यमंत्री ने बरती सावधानी, मंत्री रहे बेपरवाह….
– अब प्रदेश के एक संत रावतपुरा सरकार कटघरे में हैं। मेडिकल कॉलेज की मान्यता के लिए रिश्वत देने के मामले में सीबीआई ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इसके कारण रावतपुरा सरकार की गिरफ्तारी को लेकर चर्चा होने लगी है? हालांकि एफआईआर दर्ज होने के बावजूद इस संत के प्रति सम्मान कम नहीं हुआ। उन्होंने सागर में वेदांती आश्रम परिसर में लगभग 75 फीट ऊंची शिव प्रतिमा का निर्माण कराया है। 5 जुलाई को रावतपुरा सरकार के जन्मदिन पर इस प्रतिमा का पूजन हुआ। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का आना तय बताया जा रहा था। स्वागत के पोस्टर, बैनर, होर्डिंग तैयार हो गए थे, लेकिन वे नहीं पहुंचे। इसकी वजह रावतपुरा सरकार के खिलाफ दर्ज एफआईआर को माना जा रहा है। बावजूद इसके उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल, खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, वरिष्ठ विधायक पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, पूर्व मंत्री एवं विधायक भूपेंद्र ठाकुर ने इसकी परवाह नहीं की। वे कई अन्य विधायकों और नेताओं के साथ कार्यक्रम में पहुंचे। साफ है कि भले ही सीबीआई ने रावतपुरा सरकार पर एफआईआर दर्ज कर ली हो लेकिन इससे न संत के सम्मान में कमी आई और ना ही भक्तों की आस्था पर कोई असर पड़ा है। वेदांती परिसर में भक्तों का ताता दिन भर लगा रहा। हालांकि कांग्रेस इसे लेकर भाजपा पर चुटकी ले रही है।
0 नरोत्तम की राजनीतिक पारी पर कयासों का दौर….
– प्रदेश सरकार में गृह, जल संसाधन और जनसंपर्क जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे भाजपा के कद्दावर नेता नरोत्तम मिश्रा पार्टी की मुख्य धारा में आने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। वे लंबे समय तक पार्टी के लिए संकटमोचक की भूमिका निभाते रहे हैं। उनका कद इतना बढ़ गया था कि वे मुख्यमंत्री के भी दावेदार होते थे और प्रदेश अध्यक्ष पद के भी। इस बार भी वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के लिए प्रबल दावेदार थे। कैलाश विजयवर्गीय के बाद नरोत्तम प्रदेश के दूसरे ऐसे नेता हैं, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा में दूसरे नंबर के नेता अमित शाह के नजदीक माना जाता है। नरोत्तम के पास इस समय कोई दायित्व नहीं है। अपनी गलतियों के कारण 2023 का विधानसभा चुनाव वे पहले ही हार चुके हैं। उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व नरोत्तम को सौंपेगा, लेकिन नतीजा आया तो बैतूल से भाजपा के विधायक हेमंत खंडेलवाल बाजी मार ले गए। इसके साथ नरोत्तम के राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है। एक पक्ष का कहना है कि वे भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में जाने की ओर अग्रसर है जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि पार्टी नेतृत्व उनका लगातार उपयोग कर रहा है। हर प्रदेश के चुनाव प्रचार में उन्हें महत्वपूर्ण जवाबदारी दी जाती है। इसलिए उनकी राजनीतिक पारी अभी समाप्त नहीं हुई, वे शीघ्र ही बड़े दायित्व के साथ सामने आएंगे।
0 हेमंत का संकेत, वे ‘गरम’ भी रहेंगे, ‘नरम’ भी….
– प्रदेश भाजपा को हेमंत खंडेलवाल के रूप में अंतत: नया मुखिया मिल गया। उन्होंने नरोत्तम मिश्रा जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ कर भाजपा नेतृत्व, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और संघ का भरोसा हासिल किया। कार्यभार संभालते ही हेमंत ने अपनी प्राथमिकताओं के संकेत दे दिए। यह कह कर उन्होंने सख्त होने के संकेत दिए कि जो नेता पार्टी लाइन से अलग दाएं-बाएं चलेगा, दिक्कत में आएगा। उन्होंने कहा कि पार्टी अनुशासन से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। दूसरी तरफ खंडेलवाल ने यह कह कर नरम होने का अहसास दिलाया कि समर्पित कार्यकर्ताओं का सम्मान होगा और सभी को क्षमता के हिसाब से दायित्व दिया जाएगा। पार्टी कार्यालय के कर्मचारियों से मुलाकात में उन्होंने संवेदनशील होने का परिचय दिया। उन्होंने घोषणा की कि सभी के लिए मेडिकल क्लेम और बीमा की सुविधा सुनिश्चित की जाएगी। कर्मचारियों के बच्चों को स्कॉलरशिप मिलती है, तो पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद दी जाएगी। किसी को बैंक लोन की आवश्यकता होगी तो मैं स्वयं गारंटी देने को तैयार रहूंगा। खंडेलवाल ने प्रदेश भाजपा कार्यालय में कम शुल्क में भोजन की व्यवस्था करने की बात भी कही। संकेत साफ है कि खंडेलवाल अनुशासन तोड़ने वालों के प्रति सख्त रहेंगे और निष्ठावान कार्यकर्ताओं के प्रति नरम। वे सुख-दु:ख में भाजपा परिवार के साथ खड़े रह कर संवेदनशीलता का परिचय देंगे।
0 तलाशे जा रहे इन दिग्गजों की मुलाकातों के मायने….
– भाजपा-कांग्रेस के चार दिग्गजों की मुलाकातों ने प्रदेश की राजनीति गरमा दी है। इन मुलाकातों के मायने तलाशे जा रहे हैं। पहली मुलाकात शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय के बीच हुई जबकि दूसरी दिग्विजय सिंह और उमंग सिंघार के बीच। शिवराज और कैलाश की इंदौर में बंद कमरे में 18 मिनट की चर्चा हुई। केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर कमरे के बाहर इंतजार कर रही थीं। उनके इंतजार करने की सूचना दी गई तो शिवराज ने उन्हें 5 मिनट और इंतजार करने को कहा। दोनों सीनियर नेताओं ने अकेले में किस विषय पर चर्चा की, इसकी जानकारी सामने नहीं आई, लेकिन इसकी गूंज राजनीतिक गलियारों में सुनाई पड़ी। इसलिए भी क्योंकि शिवराज-कैलाश के संबंध लंबे समय से मधुर नहीं रहे और दोनों पॉवर में होने के बावजूद कुछ कारणों से असंतुष्ट की श्रेणी में हैं। हालांकि कैलाश ने बाद में कहा कि यह सामान्य मुलाकात थी। ठीक इसी तरह कांग्रेस में दिग्विजय और उमंग के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। दिग्विजय के खिलाफ उमंग कई गंभीर आरोप लगा चुके हैं। लेकिन बदले राजनीतिक माहौल में वे दिग्विजय से उनके घर मिलने पहुंच गए। यह मुलाकात की भी राजनीतिक हलकों में गूंज है। इसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी से नाराजगी और कांग्रेस में नए समीकरणों से जोड़ कर देखा जा रहा है।
0 बेअसर साबित हो रही भाजपा की पचमढ़ी पाठशाला….
– कई नेताओं के बयानों और एक्शन से हाल ही में पचमढ़ी में आयोजित पाठशाला बेअसर साबित होती दिख रही है। पहले चाचौड़ा की विधायक प्रियंका पेंची ने गुना पुलिस अधीक्षक पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगा कर मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया। उन्होंने कहा कि यह मेरी परेशानी नहीं, कार्यकर्ताओं की है। उन्होंने कहा कि एसपी और एसडीओपी द्वारा उन्हें सिर्फ महिला होने के कारण प्रताड़ित किया जा रहा है। जिले में थाना प्रभारियों के तबादले भी प्रभारी मंत्री और स्थानीय विधायक की अनुशंसा के बगैर कर दिए गए हैं। दूसरा, मंत्री एंदल सिंह कंसाना ने पहले मुरैना जिले की एक सभा में कहा कि यदि यहां से कांग्रेस के सांसद को जिताते और आप उन्हें भला-बुरा कहते तो वे सीधे गोली मार देते। ऐसी भाषा का प्रयोग कर वे भाजपा सांसद की तारीफ कर रहे थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के क्षेत्र में जाकर भी उन्होंने उनके लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया, जबकि पाठशाला में अच्छे आचरण और अच्छी भाषा का पाठ पढ़ाया गया था। पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा इन सबसे आगे निकल गए। वे एसडीओपी को हटाने को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ भरी बारिश बीच सड़क धरने पर बैठ गए। इससे भोपाल-जबलपुर हाइवे पर लंबा जाम लग गया। सवाल है कि पचमढ़ी में पढ़ाए गए पाठ नेता भूल गए या ये घटनाक्रम अंदरूनी राजनीति का नतीजा हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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