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यूक्रेन युद्ध के बाद पुतिन का भारत पहला दौरा: 5 लेयर सुरक्षा, PM Modi से चर्चा, रूस को 10 लाख मजदूरों की जरूरत

नई दिल्ली

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा आज से शुरू हो रही है और दिल्ली इस हाई-प्रोफाइल विजिट के लिए पूरी तरह तैयार है. यूक्रेन युद्ध के बाद यह पुतिन की पहली भारत यात्रा है, इसलिए कूटनीतिक, सुरक्षा और लॉजिस्टिक स्तर पर बेहद सख्त व्यवस्थाएं की गई हैं. शहर के कई हिस्सों में उनके स्वागत के लिए फ्लेक्स बोर्ड और रूसी झंडे लगा दिए गए हैं, जबकि ट्रैफिक डायवर्जन और सुरक्षा कवच पहले से लागू कर दिए गए हैं.

पुतिन की यात्रा के कारण ट्रैफिक डायवर्जन

पुतिन आज शाम दिल्ली पहुंचेंगे और एयरपोर्ट से सीधे सरदार पटेल मार्ग स्थित होटल जाएंगे. इस दौरान एनएच–S, धौला कुआं और दिल्ली कैंट के आसपास ट्रैफिक प्रभावित हो सकता है. शाम को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें प्राइवेट डिनर पर होस्ट करेंगे, जिसके कारण सरदार पटेल मार्ग, पंचशील मार्ग और शांति पथ के आसपास भी वाहनों की आवाजाही धीमी रहेगी. दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा कारणों से ज्यादा जानकारी साझा नहीं की है, लेकिन दावा किया है कि ट्रैफिक को लंबी अवधि तक ब्लॉक नहीं रखा जाएगा.

शुक्रवार को हालात और चुनौतीपूर्ण होंगे क्योंकि पुतिन का पूरा दिन लगातार कार्यक्रमों से भरा है. सुबह वह राजघाट जाएंगे, इसके बाद हैदराबाद हाउस में औपचारिक बैठकें होंगी. दोपहर में भारत मंडपम् में कार्यक्रम तय है, जबकि शाम को राष्ट्रपति भवन में स्टेट बैंक्वेट का आयोजन होगा. इन गतिविधियों के चलते राजघाट, आईटीओ, रिंग रोड, तिलक मार्ग, इंडिया गेट, भैरो रोड, मथुरा रोड, मंडी हाउस और दिल्ली गेट जैसे इलाकों में ट्रैफिक रुक-रुक कर चलता रह सकता है. जरूरत पड़ने पर कुछ मेट्रो स्टेशनों पर एंट्री और एग्जिट अस्थायी रूप से रोकी जा सकती है.

पुतिन की सिक्योरिटी कैसी होगी?
इधर सुरक्षा इंतजाम भी अपनी चरमसीमा पर हैं. पुतिन की हर विदेश यात्रा की तरह इस दौरे में भी उनकी सुरक्षा के लिए मल्टी-लेयर कवच तैयार किया गया है. पांच-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में NSG कमांडो, स्नाइपर्स, जैमर, ड्रोन सर्विलांस और AI आधारित निगरानी तकनीक तैनात की गई है. महत्वपूर्ण जगहों पर हाई-टेक फेशियल रिकग्निशन कैमरे लगाए गए हैं. 40 से ज्यादा रूसी सुरक्षा अधिकारी दिल्ली पहुंचकर NSG और दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर काफिले की हर गतिविधि पर नजर रख रहे हैं. पीएम मोदी के साथ बैठक के दौरान एसपीजी का विशेष सुरक्षा घेरा भी सक्रिय रहेगा.

इस यात्रा को भारत-रूस संबंधों के लिए अहम मोड़ माना जा रहा है. शुक्रवार को होने वाली 23वीं वार्षिक शिखर बैठक में रक्षा सहयोग, ऊर्जा, व्यापार और अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभाव जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चा होनी है. राजधानी में तैयारियों की रफ्तार और सुरक्षा का स्तर बताता है कि यह यात्रा सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है.

रूस को 10 लाख मजदूरों की जरूरत, पुतिन दिल्‍ली में करेंगे बड़ी डील

इस दौरे पर पुतिन भारत के साथ मजदूरों को लेकर इजरायल की तरह से ही बड़ी डील कर सकते हैं। दोनों देश सामाजिक और मजदूरों से जुड़े मुद्दे पर सहयोग करेंगे। रूस की योजना है कि 10 लाख विदेशी मजदूरों की भर्ती की जाए। इसमें भारत भी शामिल है। रूस लेबर म‍िनिस्‍ट्री का मानना है कि साल 2030 तक देश में मजदूरों की यह कमी 31 लाख तक पहुंच सकती है।

विश्‍लेषकों का कहना है कि रूसी के हजारों युवा यूक्रेन युद्ध में मारे जा चुके हैं और देश के फिर से निर्माण के लिए अब लाखों लोगों की जरूरत है। वह भी तब जब रूस में आबादी कम हो रही है और लोग बच्‍चे कम पैदा कर रहे हैं। रूसी राष्‍ट्रपति ने देश में बच्‍चे पैदा करने पर भारी आर्थिक सहायता मुहैया कराने का ऐलान किया है। रूस में अब तक मध्‍य एशिया के देशों से लाखों रूसी बोलने वाले लोग काम करने जाते रहे हैं लेकिन इससे मास्‍को को सुरक्षा को लेकर खतरा महसूस होता रहा है। यही वजह है कि रूस अब 7 लाख से ज्‍यादा मध्‍य एशिया के विदेशी मजदूरों से मुक्ति पाना चाहता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत तब तेज हुई जब मास्‍को में मार्च 2024 में आतंकी हमला हुआ।

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अमेरिका का दबाव और रूस के साथ मजबूरी

यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब भारत पर अमेरिका लगातार दबाव बना रहा है कि वह रूस से तेल आयात घटाए और अमेरिकी उत्पादों व रक्षा उपकरणों के लिए अपने बाजार खोले. वहीं दूसरी तरफ रूस भारत के लिए सस्ता तेल, हथियारों की सप्लाई और रणनीतिक सुरक्षा का बड़ा स्रोत बना हुआ है.

GTRI के मुताबिक, “पुतिन की यह यात्रा शीत युद्ध की याद में की जा रही कोई औपचारिक बैठक नहीं, बल्कि यह जोखिम, सप्लाई चेन और आर्थिक सुरक्षा को लेकर सीधी बातचीत है. यह किसी एक पक्ष को चुनने की नहीं, बल्कि टूटती वैश्विक व्यवस्था में संतुलन बनाए रखने की रणनीति है.”
भारत-रूस रिश्तों की ऐतिहासिक मजबूती

भारत और रूस की दोस्ती की जड़ें शीत युद्ध के दौर तक फैली हैं. 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया और USS एंटरप्राइज भेजा. तब सोवियत संघ ने भारत को हथियार, कूटनीतिक सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र में समर्थन दिया. 1962 के चीन युद्ध के बाद भी रूस भारत के साथ खड़ा रहा. 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद जब पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए, तब भी रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार बना रहा. आज भी भारत के 60 से 70% सैन्य प्लेटफॉर्म रूसी तकनीक पर आधारित हैं।

तीन स्तंभों पर टिका भारत-रूस रिश्ता

GTRI के अनुसार, आज भारत-रूस संबंध तीन मुख्य स्तंभों पर टिके हैं—
1- ऊर्जा (Energy)

    रूस अब भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है.
    2024 में रूस से भारत की कुल तेल खरीद का हिस्सा 37% से ज्यादा रहा.
    2021 में जहां भारत ने रूस से सिर्फ 2.3 अरब डॉलर का तेल खरीदा था.
    वहीं 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 52.7 अरब डॉलर पहुंच गया.

    यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूसी तेल सस्ते दामों पर एशियाई बाजारों की ओर मुड़ गया, जिससे भारत को भारी फायदा हुआ. 

2- रक्षा (Defence)

भारत की वायुसेना, नौसेना और थलसेना की बड़ी ताकत अब भी रूसी हथियारों पर आधारित है.

    S-400 एयर डिफेंस सिस्टम
    फाइटर जेट्स
    पनडुब्बियां
    टैंक और मिसाइल सिस्टम 

इस दौरे में भारत S-400 की तेज डिलीवरी, मेंटेनेंस और अपग्रेड को लेकर रूस से ठोस आश्वासन मांग सकता है. साथ ही Su-57 स्टील्थ फाइटर जेट को लेकर भी बातचीत संभव है, हालांकि यह फिलहाल दीर्घकालिक योजना के रूप में देखा जा रहा है.
3- कूटनीति (Diplomacy)

भारत और रूस BRICS, SCO, Eastern Economic Forum जैसे मंचों पर भी साथ काम करते हैं. इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, उर्वरक और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट जैसे क्षेत्रों में सहयोग जारी है.
भुगतान संकट और मुद्रा का नया खेल

रूस को SWIFT सिस्टम से आंशिक रूप से बाहर किए जाने के बाद भुगतान का तरीका पूरी तरह बदल गया है. अब तेल का भुगतान 60–65% यूएई दिरहम, 25–30% भारतीय रुपये और 5–10% चीनी युआन में हो रहा है. करीब ₹60,000 करोड़ रूस के भारतीय खातों में फंसा हुआ है, जिसे रूस इस्तेमाल नहीं कर पा रहा. इसी वजह से अब रूस दिरहम को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है.
भारत-रूस व्यापार में भारी असंतुलन

भारत रूस से सालाना करीब 5 अरब डॉलर का निर्यात करता है, जबकि रूस से 60 अरब डॉलर से ज्यादा का आयात करता है, जिसमें ज्यादातर हिस्सा तेल का है. भारत के प्रमुख निर्यात मशीनरी, दवाइयां और केमिकल्स हैं, जबकि रूस से आयात का बड़ा हिस्सा कच्चा तेल, कोयला, उर्वरक, हीरा और सूरजमुखी तेल से आता है. इससे साफ है कि यह व्यापारिक रिश्ता ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भर और असंतुलित बना हुआ है.
पुतिन की यात्रा के दो संभावित नतीजे
पहला: सीमित लेकिन मजबूत समझौता

    रक्षा उपकरणों की तेज सप्लाई
    लंबे समय के तेल समझौते
    नए परमाणु संयंत्र
    नया भुगतान तंत्र (दिरहम आधारित)
    यह रास्ता रिश्तों को स्थिर रखेगा, बिना अमेरिका को ज्यादा नाराज किए.

दूसरा: बड़ा रणनीतिक मोड़

    भारतीय कंपनियों का रूसी LNG और आर्कटिक प्रोजेक्ट्स में निवेश
    संयुक्त रक्षा उत्पादन
    चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री कॉरिडोर
    इंटर्नैशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को गति
    यह रास्ता भारत-रूस को और करीब ला सकता है, लेकिन इससे पश्चिमी देशों की नाराजगी भी तेज हो सकती है. 

GTRI का कहना है कि यह दौरा सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि ईंधन, हथियार और भुगतान सुरक्षा की लड़ाई है. भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह अमेरिका के दबाव और रूस पर निर्भरता के बीच अपनी रणनीतिक आज़ादी कैसे बनाए रखता है.

रूस की नई सरकारी माइग्रेसन नीति में अब इस बात पर फोकस किया जाएगा जिसमें उन्‍हीं मजदूरों को बुलाया जाए जो रूसी समाज के परंपरागत आध्‍यात्मिक और नैतिक मूल्‍यों का समर्थन करते हैं। पुतिन ने भी इस साल नवंबर महीने में एक बैठक में प्रवासन से पैदा होने वाले खतरे के मुद्दे को उठाया था। रूस ने यह घोषित नहीं किया है लेकिन अघोषित रूप से उसे मध्‍य एशिया के कट्टरपंथी मुस्लिमों से ज्‍यादा खतरा महसूस हो रहा है। भारतीयों के मुकाबले इन देशों के नागरिकों को विदेशी ताकतें ज्‍यादा भड़का सकती हैं।

विश्‍लेषकों का कहना है कि पुतिन की भारत यात्रा के दौरान मजदूरों को लेकर बड़ी डील हो सकती है। हालांकि इन मजदूरों को नागरिकता या वहां रहने की छूट इससे नहीं मिलेगी। भारतीयों को बस मध्‍य एशिया के मजदूरों की जगह पर काम मिल जाएगा और बाद में पैसे कमाने के बाद उन्‍हें वापस भारत लौटना होगा। बता दें कि भारतीयों के मन में दशकों से रूस को लेकर बहुत अच्‍छे विचार रहे हैं। भारतीय समाज सेकुलर रहा है जिससे यहां के लोगों को आतंकी बनाना आसान नहीं है। कनाडा में रहने वाले विश्‍लेषक रितेश जैन का कहना है कि अगले 3 से 5 साल तक भारत का सबसे बड़ा निर्यात अकुशल या अर्द्ध कुशल ब्‍लू कॉलर वर्कर हो सकते हैं। इससे भारत की विदेशों से होने वाली कमाई काफी बढ़ने जा रही है।

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