Bihar election :नीतीश को क्यों हटा देना चाहिए?
जातीय युद्ध वाले बिहार में नीतीश विकास की बात क्यों करते हैं? नीतीश जातिवादी -परिवारवादी हैं?
डॉ संतोष मानव
दृश्य एक
नागपुर में राजनीतिक संवाददाता था। बिहार में लालूजी मुख्यमंत्री थे। नरसंहारों का दौर था। नागपुर के अखबार बिहार की भयावह तस्वीर प्रस्तुत करते। उस दिन भी नरसंहार की खबर थी। एक मराठी दैनिक के संवाददाता ने मुझसे कहा – ओए बिहारी, कैसा है तुम्हारा राज्य बे। न बिजली, न सड़क, न शिक्षा, न स्वास्थ्य, रोज काटा-काटी ! जंगली लोग रहते हैं क्या वहां? पीड़ा हुई। पर चुप रहा। जवाब भी क्या देता?
दृश्य दो
नागपुर में मुंबई जैसा ‘भैय्या कल्चर’ नहीं है। पर शरारती लोग कभी -कभार पीन चुभोते हैं। एक दिन किसी ने पुकारा – बिहारी भाई। पता नहीं कहां से शक्ति आई। पलट कर कहा – खबरदार, अब बिहारी नहीं बोलेगा। अब हम झारखंड में हैं। झारखंडी बोल। तब तक बिहार बंट चुका था। हमारा इलाका झारखंड में आ चुका था।
दृश्य तीन
मेरे पिता आदतन शरीफ आदमी थे। नीतीश की समता पार्टी में थे। जिला अध्यक्ष थे। नाम बदला तो समता पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) हुआ। पिता इस पार्टी के भी जिला अध्यक्ष थे। राज्य सचिव भी रहे। वे पार्टी पर अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च कर देते थे। एक दिन पूछा – आप अपनी गाढ़ी कमाई गंवाते हैं। आखिर क्यों? उन्होंने कहा – राजनीति मेरे लिए जीवन शैली है। कमाई का जरिया नहीं। मैं हर माह कुछ हजार गंवाता हूं। मुझे इसका गम नहीं है। नीतीश कुमार मुझे अच्छे लगते हैं। वह विजनरी हैं। अच्छी सोच का आदमी है। ऐसा ही कुछ और।
दृश्य चार
22 साल का था। अपनी जमीन छूट गई। कमाने निकल गया। लोग – समाज – व्यवस्था को जानना – समझना सीख ही रहा था। नागपुर-भोपाल-ग्वालियर में बिहार – झारखंड के अखबारों में बड़े पत्रकार -संपादक हरिवंश का लिखा पढ़ता। वे अपने हर दूसरे – तीसरे आलेख में नीतीश कुमार की प्रशंसा करते। नीतीश कुमार को बड़ा समाजवादी नेता बताते। जोर देकर लिखते कि नीतीश के दुश्मन भी उन्हें भ्रष्ट नहीं कह सकते, कि नीतीश परिवारवाद से दूर हैं। और भी बहुत कुछ। मुझे हरिवंश जी के लिखे पर शक होता। इतनी प्रशंसा?? हरिवंश जी आजकल राज्यसभा के उपसभापति हैं।
दृश्य पांच
1992 से 2015 के बीच तीन-चार बार बिहार जाना हुआ। दो बार लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के राज में अखबार ने चुनाव कवर करने भेजा । दो बार बारात में कुछ घंटों के लिए पटना गया। बूढ़ा बिहार था। हमेशा की तरह। फिर 2024 । दो बार गया। पटना से बाहर। दूर-दराज के गांवों में। गांवों में गीजर से गर्म पानी मिला। नहाया। बताया गया बिजली अब 24 घंटे हैं। सड़क वैसी ही थी, जैसी नागपुर में होती थी। सरकारी स्कूलों में शिक्षक बच्चों को पढ़ाते दिखे। किसी ने कहा – अब 90-95 वाला बिहार नहीं है।
दृश्य छह
खाटी बिहारी पत्रकार – संपादक संकर्षण ठाकुर की किताब मंगाई- बंधु बिहारी। पढ़कर दंग रह गया। क्या कोई नेता ऐसा होता है? चार सौ से ज्यादा पन्नों की किताब का निष्कर्ष है: लालू प्रसाद यादव ने खुद के लाभ के लिए बिहार को डुबोया। नीतीश ने परिवार की कीमत पर उबारा। ठाकुर एक जगह लिखते हैं – जब भी गया, नीतीश को एकांत में फाइलों में डूबा पाया। और लालू? जब भी मिला – चमचों से घिरा पाया।
दृश्य सात
आज, अभी पढ़ा – बिहार के सारे बाहुबली पांच जातियों से हैं। भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, यादव और मुसलमान। कुर्मी? एक भी नहीं। क्या नीतीश ने कुर्मीवाद नहीं किया? अपनी जाति को अपराध करने की, लूटने की छूट नहीं दी। कुर्मी यानी बिहार की एक किसान जाति। पचास साल पहले बहुत छोटी जोत के किसान। पसीना बहाया। सब्जी उगाई। बच्चों को पढ़ाया। अब वे बड़े किसान हैं। प्रशासनिक सेवा में बहुत आगे हैं। डॉक्टर, इंजीनियर सब हैं। आबादी में कम पर मजबूत हैं। मैंने पिछले 25 साल में नहीं सुना कि कुर्मी जाति से आने वाले किसी नेता ने किसी की जमीन दबाई। दबंगई की? क्या नीतीश जाति निरपेक्ष हैं? यह बहस का विषय हो सकता है। पर नीतीश जातिवादी नहीं दिखते। वे सच्चे समाजवादी दिखते हैं।
दृश्य आठ
नीतीश कुमार ने वीडियो जारी कर कहा – 2005 के पहले बिहारी होना अपमान का विषय था। अब सम्मान है। मुझे नीतीश की बात अच्छी लगी। अब बिहारी होना कम से कम अपमान का विषय तो नहीं है। बिहार को नीतीश ने बदला है। बिहार से मेरा उतना ही लेना -देना है कि यह मेरे देश का एक राज्य है। लेकिन, हरिवंश जी और संकर्षण ठाकुर का नीतीश विषयक लेखन अब मुझे सही लगता है। अगर इनके लेखन में पचास फीसदी भी लेखकीय ईमानदारी होगी, तो नीतीश सच में बहुत बड़े समाजवादी नेता हैं। संभवतः नीतीश कुमार का यह अंतिम चुनाव है, जिसमें वे मुख्यमंत्री का चेहरा हैं। बिहारी फैसला करेंगे। फैसले से पहले बिहारियों को सोचना चाहिए कि बीस साल तक मुख्यमंत्री रहे नेता का आज भी अपना घर नहीं है! कि आज भी उनके परिवार का कोई राजनीति में नहीं है! कि उसने परिवार की कीमत पर बिहार और बिहारियत को जिआ। क्या नहीं? सोचिएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



