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क्या आप जानते हैं सूर्यपुत्र कर्ण और छठ पूजा की अनोखी कहानी? यहाँ पढ़ें पूरी कथा!

Chhath Puja 2025: बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रमुख पर्व छठ हर साल कार्तिक मास में धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित है. 26 अक्टूबर 2025 को इस महापर्व का दूसरा दिन ‘खरना’ मनाया जा रहा है. इस दिन व्रती गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाते हैं. तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर यह पर्व पूरा होता है. इस पर्व से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन एक रोचक कहानी महाभारत के नायक सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी है, जो छठ पूजा की शुरुआत को और भी खास बनाती है.

कर्ण और सूर्य देव का अनोखा रिश्ता

वीर योद्धा कर्ण न केवल अपनी बहादुरी और दानशीलता के लिए जाने जाते हैं, बल्कि सूर्य देव के प्रति उनकी अटूट भक्ति भी प्रसिद्ध है. कर्ण का जन्म माता कुंती को सूर्य देव के आशीर्वाद से हुआ था. कुंती ने अविवाहित होने के कारण समाज के डर से कर्ण को नदी में बहा दिया था, लेकिन सूर्य की कृपा से कर्ण में दिव्य शक्ति और तेज था. उनकी यह भक्ति छठ पूजा की परंपरा से गहराई से जुड़ी हुई है.

दंभोद्भव से कर्ण तक, पूर्वजन्म की कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कर्ण का पूर्वजन्म एक असुर दंभोद्भव के रूप में था. दंभोद्भव ने सूर्य देव की कठिन तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर सूर्य ने उसे 1,000 कवच और दिव्य कुंडल दिए. ये कवच उसे लगभग अजेय बनाते थे. लेकिन दंभोद्भव ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग शुरू कर दिया. तब भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने तपस्या कर उसके 999 कवच नष्ट कर दिए. आखिरी कवच के साथ दंभोद्भव सूर्य लोक में छिप गया. सूर्य देव ने उसकी भक्ति देखकर उसे वरदान दिया कि अगले जन्म में वह उनका पुत्र बनेगा. यही दंभोद्भव अगले जन्म में कर्ण के रूप में पैदा हुआ.

कर्ण ने कैसे शुरू की छठ पूजा?

महाभारत में कर्ण दुर्योधन का मित्र बना और उसे अंग देश (आज का बिहार का भागलपुर-मुंगेर क्षेत्र) का राजा बनाया गया. इस क्षेत्र में रहते हुए कर्ण ने छठ पूजा की परंपरा को देखा और अपनाया. सूर्यपुत्र होने के नाते, उन्होंने रोज़ सुबह सूर्य को अर्घ्य देना और छठी मइया की पूजा करना शुरू किया. उनकी यह भक्ति और निष्ठा ने छठ पूजा को बिहार और पूर्वांचल में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना का पर्व है. यह पर्व स्वच्छता, अनुशासन और भक्ति का प्रतीक है.

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