सावन में क्यों नहीं करना चाहिए मांस मदिरा का सेवन? जानें धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

Sawan Alcohol Ban: सावन या श्रावण का पवित्र महीना भगवान शिव को समर्पित है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस साल यह महीना 11 जुलाई को शुरू हुआ है और शनिवार 9 अगस्त तक जारी रहेगा. यह आषाढ़ माह के बाद आता है और इसे एक शुभ महीना माना जाता है. भगवान शिव को समर्पित पवित्र सावन महीना हिंदुओं के लिए गहरा धार्मिक महत्व रखता है. भक्त पारंपरिक रूप से उपवास रखते हैं, मंदिर जाते हैं और सात्विक जीवनशैली अपनाते हैं. पूरे महीने के दौरान भक्त शराब, मांसाहारी भोजन, अंडा, प्याज और लहसुन के सेवन से भी परहेज करते हैं. इस महीने में शराब का सेवन न करना केवल एक धार्मिक प्रथा नहीं है. विज्ञान और स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इस विचार का समर्थन करते हैं. खासकर सावन के साथ पड़ने वाले मानसून के मौसम को देखते हुए. यहां बताया गया है कि क्यों विशेषज्ञ और धर्मग्रंथ दोनों इस दौरान मांसाहारी भोजन और शराब से दूर रहने की सलाह देते हैं.
शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर असर
आयुर्वेद के अनुसार सावन का महीना वर्षा ऋतु का होता है. इस मौसम में पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है. शराब, जिसे ‘अम्लीय’ और ‘गर्म’ माना जाता है पाचन क्रिया को और भी बाधित कर सकती है. जिससे अपच, गैस और पेट संबंधी अन्य समस्याएं हो सकती हैं. सावन में मौसम बदलता है जिससे वायरल संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. शराब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है. जिससे व्यक्ति इन बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है. सावन का महीना मन को शांत और आध्यात्मिक बनाने का होता है. शराब दिमाग को उत्तेजित करती है और मानसिक शांति को भंग कर सकती है.
क्यों नहीं पीनी चाहिए शराब
सावन के बाद गर्मी के महीने आते हैं और मानसून के दौरान ह्यूमिडिटी का स्तर बढ़ जाता है. जिससे अत्यधिक पसीना आता है और पानी की कमी हो जाती है. ऐसे में शराब गर्मी पैदा करती है और डिहाईड्रेशन का कारण बनती है. शराब पीना हानिकारक हो जाता है. यह न केवल शरीर में लिक्विड संतुलन को प्रभावित करता है. बल्कि ब्लड प्रेशरमें उतार-चढ़ाव और डिहाईड्रेशन संबंधी जटिलताओं का कारण भी बन सकती है.
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मछली खाने पर पाबंदी
सावन मास मछलियों के प्रजनन काल में पड़ता है. इस दौरान मछलियों में जैविक परिवर्तन होते हैं जो उनकी गुणवत्ता और पोषण मूल्य को प्रभावित करते हैं. वे परजीवियों और संक्रमणों के प्रति भी अधिक संवेदनशील होती हैं. जो उनके सेवन से मनुष्यों में फैल सकते हैं. इसलिए इस दौरान मछली का सेवन अनैतिक और असुरक्षित दोनों माना जाता है.
मांस से संक्रमण का जोखिम
मानसून अपने साथ संक्रामक रोगों में वृद्धि लेकर आता है. इस मौसम में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण मनुष्य और पशु दोनों ही बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं. मांसाहारी भोजन भारी और पचाने में कठिन होने के कारण खाद्य जनित संक्रमणों का खतरा बढ़ा देता है. आयुर्वेद भी स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने के लिए मानसून के दौरान हल्के, आसानी से पचने वाले शाकाहारी भोजन के महत्व पर जोर देता है.
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मानसून में कमजोर पाचन
आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान के अनुसार बरसात के मौसम में पाचन क्रिया धीमी हो जाती है. ‘तामसिक’ श्रेणी में आने वाला मांसाहारी भोजन पचाने में ज्यादा मुश्किल होता है और पाचन तंत्र पर बोझ डालता है. इससे गैस, एसिडिटी, पेट फूलना और भारीपन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. खासकर उन लोगों में जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कमजोर है.
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शराब न पीने के धार्मिक कारण
सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. शिव को ‘भोलेनाथ’ भी कहा जाता है, जो एक सरल और सात्विक जीवन शैली को दर्शाते हैं. शराब जैसे ‘तामसिक’ पदार्थों का सेवन इस पवित्र महीने में वर्जित माना जाता है. सावन का महीना तपस्या और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है. शराब का त्याग करने से व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना सीखता है, जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है. सावन के महीने में गंगाजल का विशेष महत्व होता है. लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं. शराब का सेवन इस पवित्रता और शुद्धि के माहौल के विपरीत माना जाता है.