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मध्य प्रदेशराज्य समाचार

मध्य प्रदेश के आशापुरी गांव में 900 साल पुराने भूतनाथ महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाएगा

रायसेन
 विश्व प्रसिद्ध भोजपुर शिव मंदिर से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित आशापुरी गांव गुमनामी से बाहर निकलने को तैयार हो रहा है। यहां नौवीं से 11वीं शताब्दी के बीच परमार राजाओं के दौर में बने मंदिर समूह के अवशेष से भूतनाथ महादेव का मंदिर फिर से आकार लेगा। इसे बनाने की तैयारी शुरू हो गई है।

आशापुरी गांव में तालाब किनारे 9वीं से लेकर 11वीं सदी के बीच बने 26 से अधिक मंदिरों के अवशेष बिखरे हैं। इन्हें वर्ष 2011 में खोजा गया था। राज्य पुरातत्व विभाग ने इन्हें फिर से खड़ा करने योजना पर काम शुरू किया था। सबसे पहले यहां के सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। अब वहां भगवान शिव के भूतनाथ मंदिर को फिर से बनाने की तैयारी शुरू हो गई है।

26 मंदिरों की श्रृंखला में शामिल हैं यह मंदिर

पुरातत्व के विशेषज्ञ उसकी नींव और परमार कालीन मंदिर शैली के आधार पर ड्राइंग पर काम शुरू कर चुके हैं। इसका काम पूरा होते ही मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य शुरू हो जाएगा। करीब 900 साल पुराने वैभवशाली इतिहास से आज की पीढ़ी को रूबरू कराने इस मंदिर का निर्माण किया जाएगा। यहां मिले 26 मंदिरों की श्रृंखला में भूतनाथ महादेव का मंदिर 21वें क्रम पर है।

दो साल में पूरा होगा निर्माण कार्य

यह मंदिर आकार में सूर्य मंदिर से चार गुना बड़ा होगा। इस पर करीब दो करोड़ रुपये खर्च होंगे। निर्माण कार्य लगभग दो साल में पूरा होना है और इसे नागर शैली में बनाया जाएगा। इसके निर्माण में यहीं से निकले पुराने मंदिरों के अवशेष (पत्थर) का उपयोग होगा। पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त अभियंता डी.एस. सूद इस परियोजना को तकनीकी मार्गदर्शन दे रहे हैं।

तीन शिखरों वाला मंदिर होगा

पुरातत्व विभाग ने जो खाका तैयार किया है, उसके मुताबिक इसे त्रिकूट मंदिर के रूप में बनाया जाएगा यानी मंदिर के तीन शिखर होंगे। यहां गर्भगृह के स्थान पर प्राचीन काल से स्थापित शिवलिंग मुख्य शिखर के नीचे होगा। वहीं भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की प्रतिमाएं भी स्थापित की जाएंगी, जो यहां मिली थीं। मंदिर की लंबाई 30 मीटर, चौड़ाई 32 मीटर, और ऊंचाई 12 से 13 मीटर होगी। मंदिर निर्माण में 88 क्यूबिक मीटर पत्थर का उपयोग होना है इसमें करीब 15 प्रतिशत नया पत्थर भी लगेगा।

इसलिए महत्वपूर्ण है यह मंदिर

वरिष्ठ पुरातत्वविद नारायण व्यास बताते हैं कि नौवीं से लेकर 11वीं सदी तक 200 साल में यहां 26 से अधिक मंदिर बनाए गए। ये मंदिर प्रतिहार और परमार काल के दौरान की मंदिर और वास्तुकला को जानने-समझने में सहायक हैं। कभी यहां ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बेहद खूबसूरत मंदिर हुआ करते थे। मंदिरों के आधार स्तंभ और पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां, आसपास जमीन पर रखी प्रतिमाएं अपने समय की मूर्ति कला और वास्तु ज्ञान से परिचित करवाती हैं।

मंदिर की ड्राइंग डिजाइन बनाई जा रही है

    वर्तमान में जो स्ट्रक्चर है, उसकी ड्राइंग डिजाइन बनाई जा रही है। ड्राइंग बन जाने के बाद पार्ट्स को खोलकर डिजाइन के मान से जोड़ने का कार्य शुरू होगा। यह मंदिर दो वर्ष में तैयार हो जाएगा। – डॉ. रमेश यादव, उप संचालक, पुरातत्व विभाग

 

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